सोमवार, 26 मार्च 2012

स्कूल की जीवविज्ञान प्रयोगशाला से मिले मानव भ्रूण



पीपुल फॉर एनिमल की सूचना पर पुलिस ने शुक्रवार को ग्रीनफील्ड पब्लिक स्कूल की बॉयोलॉजी लैब में छापा मारकर मानव भ्रूण बरामद किए.

पीपुल फॉर एनिमल (पीएफए) की सूचना पर पुलिस ने शुक्रवार को जीटीबी थाना क्षेत्र स्थित ग्रीनफील्ड पब्लिक स्कूल की बॉयोलॉजी लैब में छापा मारकर मानव भ्रूण सहित विलुप्त हो चुकी कई प्रजातियों के जीव बरामद किए.

स्कूल प्रशासन के खिलाफ पुलिस ने वन्य प्राणी अधिनियम के तहत केस दर्ज कर जांच शुरू कर दी है.

पीपुल फॉर एनिमल के सचिव सौरभ गुप्ता के मुताबिक, उनकी संस्था को सूचना मिली कि दिलशाद गार्डन स्थित ग्रीन फील्ड पब्लिक स्कूल की लैब में विलुप्त प्रजाति के कई जीवों पर स्कूल के छात्रों से प्रयोग कराए जा रहे हैं.पीएफए ने तुरंत इसकी सूचना जीटीबी एन्क्लेव पुलिस को दी.

पुलिस ने पीएफए की टीम के साथ स्कूल में छापामारी की और लैब में दो कांच के जारों में रखे मानव भ्रूण समेत 16 जारों में रखे विलुप्त प्रजाति के तीन कोबरा, दो मेंढक, दो कछुए, छिपकलियों व समुद्री जीवों को बरामद कर लिया.मानव भ्रूणों में 7-8 महीने का एक मेल और दूसरा फीमेल भ्रूण है.

पुलिस ने सभी जारों को कब्जे में लेकर स्कूल प्रशासन के खिलाफ वन्य जीव-प्राणी अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है.
उत्तर-पूर्वी जिला पुलिस उपायुक्त बीके सिंह के मुताबिक, वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट व मानव भ्रूणों को बॉयोलॉजी लैब में रखने के मामले में धारा 315 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।

शुक्रवार, 2 मार्च 2012

शाकाहार करोगे तो मूड बन जाएगा !!



पोषण आहार विशेषज्ञ और ‘फोर्क्स ओवर नाइव्स’ जैसी फिल्मों का हम आभार मानते हैं जिनकी वजह से अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों में तेजी से शाकाहार का प्रचार-प्रसार हो रहा है, हम पहले से जानते हैं कि मांसाहार और कई घातक रोगों में में सीधा और मजबूत सम्बन्ध होता है, जैसे कि मधुमेह, मोटापा एवं ह्रदय-रोग आदि. वैसे तो हमारे देश में एक कहावत प्रचिलित है ‘ जैसा खावे अन्न, वैसा होवे मन’.
हमारे देश में आगमों और धार्मिक ग्रंथों में शाकाहार को सर्वश्रेष्ठ जीवन शैली का अनिवार्य अंग माना गया है और अब अमेरिका से प्रकशित एक पत्रिका ‘न्यूट्रीशनल जर्नल’ में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ है जिसमें इस बात की पुष्टि की गयी है कि मांसाहार हमारे मन-मस्तिष्क को बुरी तरह प्रभावित करता है अर्थात हमारे मूड पर दुष्प्रभाव डालता है.
शोधकर्ताओं ने लगभग ४० मांसाहारी व्यक्तियों को तीन प्रकार के आहार १. पूर्ण शाकाहार, २. थोड़ी मछली अथवा ३. प्रतिदिन मांस का सेवन करने के लिया कहा. केवल दो सप्ताह के भीतर ही आश्चर्यजनक परिणाम सामने आये, जो व्यक्ति सिर्फ शाकाहार का सेवन कर रहे थे उनमें तनाव काफी कम था और वे काफी हल्का अनुभव कर रहे थे जबकि मांसाहारियों में ठीक इसके उलट ‘तनाव’ अधिक था.
शोधकर्ताओं के अनुसार, इन परिणामों से पता चलता है कि ‘मांस, मछली/मुर्गा आदि से बना आहार किसी भी व्यक्ति की मानसिक स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने में सक्षम है. इन शोधकर्ताओं का मानना है कि मांस आधारित आहार से न केवल स्वास्थ्य सम्बन्धी जोखिमों को कम किया जा सकता है बल्कि इससे पर्यावरण को भी लाभ मिलता है.
विज्ञान के निरंतर शोधो और खोजों से यह बात पुष्ट होती जा रही है कि मानव शरीर के स्वास्थ्य के लिए शाकाहार ही सर्वोत्तम आहार है, आम धारणा भी यही कहती है कि शाकाहार करोड़ों-अरबों निर्दोष/मूक प्राणियों की प्राण रक्षा के लिए अच्छा है, मांसाहार के लिए करोड़ों जीव फैक्ट्री फार्म्स अथवा कत्लखानों में अकथनीय यातनाएँ देकर हर दिन मौत के घाट उतार दिए जाते हैं.

क्या आप तैयार हैं?

शाकाहार अपनाइए, यदि आप मूक जानवरों को बचाना चाहते हैं अथवा अपने तन और मन को स्वस्थ रखना चाहते हैं.

संडे हो या मंडे, कभी ना खाओ अंडे



मुर्गियों के साथ की जाने वाली भीषण क्रूरता आपको अंडे का सेवन छुड़वाने के लिए काफी नहीं है तो अब अंडा खाने वालों के लिए एक और सचेत कर देने का कारण हमारे पास है कि वे अब शाकाहार को अपना लें और अंडे को ‘टाटा-बाय-बाय’ कर दें. हाल में ही यूएसए टुडेएक रिपोर्ट छपी है जिसके अनुसार अमेरिका के मिनिसोटा में स्थित ‘ माइकल फूड्स’ कम्पनी ने सराअ (संयुक्त राज्य अमरीका) के ३४ राज्यों के अंडे वापस बुला लिए हैं कारण है अण्डों में पाया गया एक घातक विषाणु जिसका नाम है लिस्टेरिया. इस विषाणु से अन्य लक्षणों के साथ-२ प्राणघातक संक्रमण, तेज बुखार, गंभीर सिरदर्द, जी मिचलाना  आदि का खतरा रहता है.
यह अमरीका में इस वर्ष का पहला वाकया है इससे पहले वहाँ २०१० ‘ओहायो फ्रेस एग्स’ कम्पनी ने साल्मोनेला से दूषित ३ लाख अंडे और उसी वर्ष ‘राइट कंट्री एग’ ने २५ करोड़ अंडे वापस बुला लिए थे, अमरीका के इतिहास में अंडे वापस बुलाने की यह सबसे बड़ी घटना है .
बढ़ती हुई पशु-क्रूरता और बीमारी की जोखिम के कारण इस बात में कोई अचरज नहीं कि इस देश में ‘अण्डों’ की माँग बहुत तेज़ी से घट रही है. अमरीकी कृषि विभाग के अनुसार २००६ से लगातार अण्डों की खपत में कमी आ रही है.
पर हमारे देश में ‘प्रदूषित’ अंडे खुलेआम बेचे जा रहे हैं, मुर्गियों के पालन में पशु कल्याण कानूनों और न्यायालय के निर्देशों का कोई पालन नहीं करता है. अंडा बेचने वाली कम्पनियाँ और ‘राष्ट्रीय अंडा समन्वय समिति’ (National Egg Coordination Committee) ‘अंडे’ का झूठा और भ्रामक प्रचार –टीवी विज्ञापन करके आने वाली पीढ़ी को मांसाहारी बनाने पर तुली हुई हैं .
यदि हमारे देश में अण्डों का निष्पक्ष प्रयोगशाला परीक्षण किया जाए तो ‘भयानक परिणाम’ सामने आ सकते हैं. जैसा कि हम दूध-घी के नमूनों की जांच में देख चुके हैं जिसमें देशभर के ७५-९०% तक नमूने दूषित पाए गए थे.
आम उपभोक्ता के लिए यही समझदारीभरा निर्णय होगा कि वह जीवदया को बढ़ावा देने/ पशुओं के प्रति होने वाली क्रूरता को रोकने के लिए और गंभीर बीमारियों तथा मौत की जोखिम को कामकरने के लिए शाकाहार अपनाये, अण्डे और इससे बनने वाले केक, बिस्किट, पेस्ट्री, आइसक्रीम आदि को हमेशा के लिए त्याग दे. बेकिंग विदाउट एग्स के लिए क्लिक कीजिए.