सरल एवं पूर्ण
दुष्प्रभाव-मुक्त उपचार
simple & absolutely side effectless remedy:
केस स्टडी हेतु आधारभूत आंकड़े
Base data for case study:
विदेश मंत्रालय के निवेश एवं प्रौद्योगिकी
संवर्द्धन प्रभाग(आईटीपी) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष २०११-१२ के दौरान देश में २.१४
मिलियन मीट्रिक टन भैंस का मांस प्राप्त हुआ और उसका निर्यात करने से १५००० करोड़ रुपयों
की निर्यात आय प्राप्त हुई.
According
to figures released by i.t.p. Division, Ministry of External Affairs,
Government of India, during 2011-12, 2.14 Million mt of
buffalo
meat was produced from the country and the export earnings were rs. 15000cr.
कृषि मंत्रालय के पशुपालन,
डेयरी एवं मत्स्यपालन विभाग द्वारा जारी ‘आधारभूत पशुपालन सांख्यिकी-२००६’ के अनुसार
एक स्वस्थ भैंस से औसतन १२० किलो मांस प्राप्त होता है.
As per the Basic Animal Husbandry
Statistics - 2006 released by Ministry of Agriculture, Department of Animal
Husbandry, Dairies & Fisheries, Government of India, on an average 120kgs.
of meat is available from a buffalo.
बाकी
खाल, त्वचा, हड्डी, सींग, खुर, अन्य अंग एवं खून का वजन होता है. इसका आशय है कि २.१
मिलियन मीट्रिक टन भैंस का मांस प्राप्त करने हेतु १.७५ करोड़ भैंसों को क़त्ल किया गया
होगा. The
rest is the weight of its hides, skin, bone, horns, hoofs, other organs and
blood. thus to obtain 2.1millionmt of buffalo meat 1.75cr buffaloes would have
been slaughtered.
राज्यों
के कानूनों में आयु आधारित प्रतिबन्ध अथवा उपयोगिता आधारित प्रतिबंधों के बावजूद आम
तौर पर निर्यात के लिए क़त्ल की जाने वाली भैंसों की औसत आयु १० वर्ष से कम होती है.
ताज़ा और स्वस्थ मांस पाने के लिए अनेक जवान भैंसों और पाड़ो को भी क़त्ल किया जाता है.
despite age-based restrictions
in state laws or usefulness based restrictions; it is common practice that the
average age of buffaloes slaughtered for export is <10years. in order to
obtain tender and healthy meat, many young buffaloes and calves also are
slaughtered.
भैंसों
की औसतन आयु १८ से २० वर्ष की होती है. हालांकि, यदि औसत आयु १५ साल भी मान ली जाए
तो भी लगभग सभी भैंसों को १० वर्ष से कम में ही क़त्ल कर दिया जाता है. भैंसों को उनके
स्वाभाविक जीवनकाल समाप्त होने से पाँच वर्ष पहले ही क़त्ल कर दिया जाता है.
the average lifespan of
buffaloes is 18 to 20years. however, even if average 15years is considered,
though all most are slaughtered much below 10years. buffaloes are slaughtered
at least 5years before their natural life span would have ended.
इन
आंकड़ों के आधार पर, मुझे एक अध्ययन आपके सामने रखना है कि कैसे मवेशियों का अस्तित्व
राष्ट्र एवं अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी है और क्यों हम इसे पशुधन कहते हैं?
Based on the above data, let
me present one case study how the existence of cattle are useful to nation
& economy & why we call it pashudhan.
(क) कृषि
क्षेत्र को क्षति Loss to Agriculture Sector:
175लाख
भैंसे प्रतिवर्ष क़त्ल की जाती हैं
एक
भैंस प्रतिवर्ष 5.4 टन गोबर
प्रतिवर्ष देती है.
अर्थात
गोबर की कुल हानि =
175 x 5.4 = 945
लाख टन
|
❖
|
1
टन गोबर = 2 टन जैविक
खाद .
945 लाख टन गोबर
=
1850
लाख तन जैविक खाद
|
♦
|
1
एकड़ भूमि को ज़रूरत होती है > 3 टन जैविक
खाद की
अर्थात
1850लाख
टन खाद से 630
लाख एकड़ कृषि भूमि
|
एक भैंस से एक वर्ष में ५.४ टन गोबर
प्राप्त होता है. अतः १७५ लाख (निर्यात के लिए क़त्ल की जा रही) भैंसों से एक वर्ष में
५.४ टन प्रतिवर्ष की दर से 175 x 5.4 = 945 लाख टन गोबर प्राप्त होगा.
a buffalo
yields 5.4tons of dung per annum. Thus 175Lakhs (Buffaloes slaughtered
for export) buffaloes in a year at the rate of 5.4tons p.a. would yield 175 x 5.4 = 945lakh tons of dung.
जब
गोबर को सम्मिश्रण अथवा अन्य विधि से जैविक खाद में परिवर्तित किया जाता है, तो प्राप्त
होने वाला खाद दुगुना होता है. इसका आशय है कि ९४५ लाख टन गोबर से १८९० लाख टन जैविक
खाद प्राप्त होगी.
When dung is converted into
organic manure by composting or other process, manure obtained is double the
quantity of dung. that means 945lakh tons of dung would get converted into 1890lakh tons of organic
manure.
एक
वर्ष में एक एकड़ भूमि को तीन टन जैविक खाद की ज़रूरतपड़ती है. इसका मतलब हुआ कि १८९०
लाख टन खाद से ६३० लाख एकड़ कृषि भूमि की खाद की आवश्यता पूरी की जा सकती है.
an acre of land needs three
tons of organic manure in a year. thus, 1890lakh tons can meet the manure requirements of 630lakh acres of agricultural
land.
६३० लाख एकड़ अथवा २५२ लाख हेक्टेयर
भूमि के लिए, रासायनिक उर्वरक (फर्टिलाइजर) की आवश्यकता १४३ किलो प्रति हेक्टेयर है अर्थात कुल
३६०३ लाख टन उर्वरक (फर्टिलाइजर) की ज़रूरत
पड़ेगी. यूरिया/अमोनिया उर्वरक (फर्टिलाइजर)
की सब्सिडीप्राप्त और नियंत्रित कीमत (वर्ष
२०१२) रु.७३२०/- प्रति टन बैठती है, अर्थात उर्वरक (फर्टिलाइजर) की लागत रु. २३६७ करोड़ होगी.
For 630lakh acres or 252lakh hectare of land, the
chemical fertilizer requirement @ 143/-kg. per hectare, total will be 3603lakh tons. Considering the
subsidized and controlled average price of urea/ammonia fertilizer (2012 prices) of Rs.7320/- per ton,
the fertilizer cost will be RS.2367CR.
|
1
एकड़ से 1382किलो
खाद्यान्न की उपज
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अर्थात
630लाख
एकड़ x
1.382टन =
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|
871
लाख टन खाद्यान्न बिना उर्वरक (फर्टिलाइजर) के उत्पन्न किया जा सकता है
|
|
|
एक एकड़ भूमि से औसतन १३८२ किलो खाद्यान्न
प्राप्त होता है. अतः ६३० एकड़ कृषि भूमि से एक वर्ष में ६३० लाख x
१.३८२ टन = ८७१ लाख टन खाद्यान्न उगाया जा सकता है, जिससे रासायनिक उर्वरक (फर्टिलाइजर)
पर लगने वाली भारी उत्पादन लागत की बचत होगी.
.
The
average foodgrains yield from an acre of land is 1,382kg. Thus, from 630lakh acres of
agricultural
land, in a year 630lakh x 1.382tons = 871lakh tones of foodgrains can be grown,
saving the
major/heaviest input cost of chemical fertilizer by using the free organic
manure.
यदि हम खाद्यान्न, दालों अथवा चावल
का औसत क्रय मूल्य ११ रुपये प्रति किलो (यह वह मूल्य है जो किसानों को मिलता है, नाकि
उपभोक्ता द्वारा चुकाया जाने वाला क्रय मूल्य) ले लें, एक वर्ष में ८७१ लाख टन खाद्यान्न
के उत्पादन की लागत को जबर्दस्त रूप से कम किया जा सकता है अर्थात ४०% से भी ज़्यादा.
if we
consider the average procurement rate of RS.11/- per kg. (what the farmers get
and not the price at which the consumer finally gets the foodgrain) for
foodgrains, cereals, or rice, the cost of production 871LAKHS tons of foodgrains in a year
shall reduce drastically i.e. > 40%.
|
खाद्यान्न
से चारा अनुपात है 1:3 अर्थात
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871लाख
टन खाद्यान्न से
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|
2,613
लाख टन चारा उत्पन्न होता है(871 x 3)
|
|
|
खाद्यान्न से चारे का कोर्स अनुपात
१:३ है. अतः ८७१ लाख टन खाद्यान्न से ८७१*३
अर्थात २६१३ लाख टन चारा उपलब्ध होगा.
The ratio of coarse foodgrains to fodder is 1:3. Thus from 871lakh tons foodgrains, the
fodder availability will be 871 x 3 i.e. 2613lakh tons.
एक
भैंस को ज़रूरत होती है -> 15किलो चारा
प्रतिदिन.
अर्थात
2,613
लाख टन चारे से 477 लाख भैंसों
का पेट बिना खर्च के भरा जा सकता है 2,61,3000किलो * 365दिन) *( 15किलो
चारा प्रतिदिन = 477लाख भैंसों
का पेट भरा जा सकता है.)
|
एक भैंस को एक दिन में १५ किलो चारे
की जरुरत पड़ती है. अतः २६१३ लाख टन चारे से ४७७ लाख भैंसों का पेट भरा जा सकता है.
एक वर्ष में १७५ लाख भैंसों को क़त्ल किया जाता है और ४७७ लाख भैंसों के लिए पर्याप्त
होने जितना चारा उत्पन्न किया जा सकता है. इस तरह यही भैंसें अपनी जरुरत के अनुसार
चारा उत्पन्न करने में सहायक होती हैं.
a buffalo needs 15kg of fodder per day. thus from 2613lakh tons, 477lakh buffaloes per annum can be fed. the number of buffaloes slaughtered is 175lakhs and fodder sufficient for 477lakh buffaloes can be produced. thus these buffaloes help in
growing fodder for their entire feeding requirement.
यदि देश को इतनी मात्रा में चारा उगाना पड़े
और वह भी किसी खाद्यान्न के उप-उत्पाद के रूप में नहीं बल्कि एक पृथक उत्पाद के रूप
में तो कोई भी कल्पना कर सकता है कि भूमि, खाद, और अन्य सामग्री की ज़रूरत पड़ेगी. फसल उगाने के सही तरीके का इस्तेमाल करके और निर्यात
के लिए भैंसों के वध पर रोक लगाकर, चारा बिना किसी अतिरिक्त लागत के बिना किसी विशेष
प्रयास और अतिरिक्त भूमि के उपलब्ध हो जाएगा.
if the country were to
decide on growing this much quantum of fodder for the animals, not by way of a
by-product of foodgrains but as a separate product by itself, one can imagine
the requirement of land, requirement of manure and other inputs. by adopting
proper cropping pattern and by imposing ban on slaughter of buffaloes for
export, such fodder is available without any extra cost, extra effort or
extra land).
जैसा
कि ऊपर बताया गया है, भैंसों का संरक्षण ना केवल संरक्षित की जाने वाली भैंसों की चारा
आवश्यकता को पूरा करने के लिए अधिक चारा उपलब्ध कराएगा बल्कि अन्य जानवरों के लिए भी
चारा बचा रहेगा, जो कि जवान और दुधारू, भार-वाहक एवं प्रजनन की दृष्टि से उपयोगी होते
हैं.(प्रकृति ने हमें कितनी शानदार व्यवस्था दी है पर दुर्भाग्य से हमने स्वयं प्रकृति
के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा रखा है)
As explained hereinabove,
preservation of the buffaloes will not only help in growing the fodder
requirement of the buffaloes saved, but also generate surplus for other animals
which are younger and considered useful from the angles of milch, draught and
breeding capacities (what a wonderful arrangement nature have provided us. but
unfortunately we have declared war against nature).
(ख) रोजगार
की दृष्टि से भैंसों के गोबर से एक वैकल्पिक लाभ:
An Alternate benefit from the
dung of buffaloes from employment angle:
175Lakh Buffaloes slaughtered
x 5.4Tons Dung p.a. = 945Lakhs Ton Dung per Year.
.*. from 945Lakhs Tons Dung,
472Lakhs Tons Dung Cakes can be provided. Average rate of Dung Cake =
Rs.2/-Each.
.'. 47,20,00,00,000 x 2 =
94,40,00,00,000 i.e. 9,440Crores
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A Woman's survival income Rs.2,500/- per month, i.e. 1250 Dung Cakes
p.m. i.e. 15,000 Dung Cakes p.a.
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Rs.9,440Crores
can provide employment to 31,46,666 Woman in Rural Area with earning of Rs.30.000/-
p.a., by selling just 50 Dung Cakes per day (25day per month).
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जैसा कि पहले बताया जा चुका है १७५ लाख
भैंसों से एक वर्ष में ९४५ लाख टनगोबर प्राप्त होता है. इस गोबर से ४७२ लाख टन सूखा
गोबर प्राप्त होता है, सूखने पर गोबर का वज़न ५०% तक कम हो जाता है. गोबर से ग्रामीण
क्षेत्र में कंडे/उपले बनाए जाते हैं और उनका इस्तेमाल घरेलु ईंधनके रूप में किया जाता
है. औसतन एक कंडे/उपले का भार १ किलो होता है अतः ९४५ लाख टन गोबर से अर्थात ४७२ लाख
टन सूखे गोबर से ४७२० करोड़ कंडे/उपले बनेंगे. यही कंडे ग्रामीण क्षेत्र में १-२ रुपये
में बेचे जाते हैं और छोटे कस्बों में २.५ रुपये से ३ रुपये. यदि औसत मूल्य २ रुपये
मानी जाए तो ९४४० करोड़ रुपयों की आय प्राप्त होगी.
as
mentioned earlier, 175l.akh buffaloes yield 945lakh tons of dung in a year.
this dung will yield 472lakh tons of dry matter (when dung dries up it loses 50% of its weight in moisture).
dung is used in rural areas for making dung cakes to meet household fuel needs.
the average weight of a dung cake is ikg. thus from 472lakh ton dung dry matter, 4720cr of dung cakes can be made.
dung cakes are sold at 1 to 2 Rupees per piece in rural areas and Rs.2.50 to rs.3/- in small towns. if average
price of rs.2/-
is taken,
it yields an income of
RS.9440CR.
ग्रामीण
क्षेत्रों में, मुख्यतः महिलाएँ गोबर इकट्ठा करने और उससे कंडे बनाने का काम करती हैं,
यदि गाँव में एक महिला की आजीविका के लिए प्रति माह २५०० रुपये की ज़रूरत मानी जाए तो
उसे इतने रुपये कमाने के लिए १२५० कंडे बेचने होंगे और एक साल में १५००० कंडे.
In rural areas it is mainly
women folk who are engaged in collecting dung
and making dung cakes. if subsistence requirement of a woman in a village is
taken as RS.2500/-per month, such woman will
have to make and sell 1250 DUNG cakes in a month or 15000 in a year.
अतः
३००००/- रुपये प्रतिवर्ष/महिला की दर से ३१,४६,६६६ महिलाओं के लिए कुल आय ९४४० करोड़
रूपये प्रतिवर्ष होगी, यह रोजगार बिना किसी तरह के बुनियादी ढाँचे, निवेश और अन्य किसी
अतिरिक्त भार के हो जाएगा.
Thus, at the
rate of Rs.30,000/- p.a./women, total income works
out to RS.9,440CR per year for 31,46,666 women by providing them an
employment without any infrastructure or investment and burdening anybody!
■इस
विश्लेषण से इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि मांस निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाना और मांस निर्यात नीति का उन्मूलन करना अनेक तरह
से अत्यंत लाभकारी है जैसे रोजगार पैदा करना,सतत राजस्व/आय में वृद्धि, बहुमूल्य नस्लों
का परिरक्षण, पर्यावरण,जल, मृदा एवं कृषियोग्य
भूमि जैसे प्राकृतिक संसाधन का बचाव, वहनीय मूल्यों पर दूध की उपलब्धता, मांस क्षेत्र
को दी जाने वाली सब्सिडी के भार से मुक्ति, सब्सिडी एवं कच्चे तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों
की आयात लागत में भारी बचत, चालू खाते के घाटे में कमी, आयात और निर्यात के व्यापारिक
अंतर को कम करना, ऊर्जा और बिजली का संरक्षण, खाद्यान्न के उत्पादन में तीव्र वृद्धि.
The above analysis clearly
indicates that banning meat export and abolition of meat export policy is
manifold moue advantageous from the point of employment generation, sustainable
revenue growth, preservation of precious breeds, environment, natural resources
like Water, Soil & Fertility of arable land, Milk availability at
affordable prices, complete relief from the burden of number subsidies to meat
sector, huge saving on subsidy & import cost of crude & petroleum
products, relief in current account deficiency and winding trade gap of import
& export, conservation of energy & power, significant increase in
production of food grains.
इसकी
तुलना में, मांस निर्यात क्षेत्र से कितने लोगों को रोजगार और जीविका मिलेगी? इसके
अतिरिक्त मांस निर्यात पर रोक लगाने के लिए सैकड़ों अन्य ठोस कारण हैं.
Compared to this, how many
people can be provided employment and livelihood by the meat export sector?
there are hundreds of more other most sustainable reasons for banning meat
export.
और
सरकार को उसको हो रही राजस्व और रोजगार की हानि की अधिक चिंता करनी चाहिए, जो कि मांस
निर्यात पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाकर रोकी जा सकती है.
And Govt, need not have to
worry about it's loss of revenue & employment as it can be earned many fold
more if slaughtering for export ban completely.
हमारी
भारत सरकार वास्तविक,समग्र, सतत और गौरवपूर्ण विकास को हासिल करेगी.
Our India Govt, will also
achieve real inclusive, sustainable, and prudence growth.
(ख)
भारत को चहुमुखी विजय मिल सकती है INDIA CAN BE IN WIN-WIN SITUATION
Ø रासायनिक
उर्वरक (फर्टिलाइजर) के लिए दी जाने वाली १,३०,०००
करोड़ एवं अनाज पर ४५००० करोड़ की वार्षिक सब्सिडी को जबर्दस्त रूप से कम किया जा सकता
है.
Ø भारत
के १२ करोड़ ग्रामीण परिवारों द्वारा ईंधन के लिए कंडे/उपले का प्रयोग करने से गैस/कैरोसिन
पर खर्च किए जाने वाले ६०००० करोड़ रुपयों की बचत {ग्रामीण
जनसँख्या को ६० करोड़ माना गया है [कुल जनसंख्या का ५० प्रतिशत] अर्थात १२ करोड़ परिवार
एक वर्ष में ५००० रुपये कैरोसिन/गैस पर खर्च करते हैं}
Ø Annual Subsidy of
rs.1,30,000Cr given for chemical fertilizers & Rs.45,000Cr for food can be
substantially reduced.
Ø Annual saving of Rs.60,000Cr
spent on fuel (Kerosene/Gas) by 12Cr families staying in rural india by using
freely available dung cakes as fuel. (assuming rural population as 60cr people
(50% of total population) i.e. 12cr families (assuming 5 persons in a family)
spending at least rs.5,000/- p.a. on Kerosene/Gas).
Ø रासायनिक
उर्वरक (फर्टिलाइजर) , डीज़ल,पेट्रोल पर खर्च कीं जाने वाली विदेशी मुद्रा की भारी बचत.
Huge saving of forex which is
spent on import of chemical fertilizers, diesel, petrol.
Ø गोबर
और जलाऊ लकड़ी के ऊष्मादायक मूल्य की तुलना करने पर, एक भैंस का गोबर एक वर्ष में ६
वृक्षों को बचा सकता है, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी के लिए काटा जाता
है.
Comparing the calorific value
of firewood and dung fuel, one buffalo's dung can save 6 trees in a year, which
are fell for firewood in rural areas!
Ø पशु
आधारित परिवहन से ग्रामीण क्षेत्र में पेट्रोल-डीज़ल की खपत में भारी बचत Huge savings in petrol & diesel consumption in
rural areas by using cattle based transportation.
Ø रासायनिक
उर्वरक (फर्टिलाइजर) के बदले गोबर की खाद का प्रयोग करने से भूमि बंजर होने बचेगी और
उसकी उर्वरता बढ़ेगी.
Saving the fertile land of the
country from becoming barren lands due to replacement of dung manure by
chemical fertilizers.
Ø लगभग
६ लाख आय पैदा करने वाले विकेंद्रीकृत, और स्वावलंबी केन्द्रों का संरक्षण जैसे गाँव
जिनमें जीवन कृषि एवं पशुपालन सम्बन्धी ग्रामीण उद्योगों के इर्दगिर्द घूमता है. Saving about six lakhs decentralized wealth
generating, self-sufficient centres viz. villages, resolving around agriculture
and animal husbandry related village industries.
सौजन्य एवं स्रोत: विनियोग परिवार – मुंबई
|
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