बुधवार, 8 अक्टूबर 2014

फिल्म निर्माता लुनिया ने फिर उठाई गौ माता को राष्ट्रीय पशु बनाने की मांग


उज्जैन / जाने माने समाजसेवक एवं फिल्म निर्माता अशोक लुनिया ने एक बार फिर गौ माता को उनका वास्तविक प्रतिष्ठा दिलाने के लिए देश भर के गौ भक्तों सहित एक अभियान प्रारम्भ कर दिया है.

गत 20 वर्षों से भी अधिक समय से समाजसेवा के साथ गौरक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाने वाले श्री लुनिया ने 3 अक्टूबर 2014 को सोशल नेटवर्किंग के सहयोग से फेसबुक पर एक पेज का निर्माण किया है "गौ माता को करें राष्ट्रीय पशु घोषित" जिमसें श्री लुनिया देश के कोने- कोने से 5 करोड़ लाइक प्राप्त कर लोगो को गौ रक्षा के लिए एक मंच पर एकत्रित करना चाहते है एवं माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से अपील करना चाहते है की वो गौ माता को राष्ट्रीय पशु घोषित कर भारतवर्ष में विद्धमान सभी धर्म की धार्मिक भावनाओ का सम्मान प्रदान करें.

इस सन्दर्भ में जब समाजसेवी एवं फिल्म निर्माता अशोक लुनिया से बात किया गया तो श्री लुनिया ने इन पक्तियों के सहारे अपनी बातों को रखा "गीता बाइबल कहे कुरान, वेद कहे यही कहे पुराण अल्ला ईसू नानक के संग गौ माता में बसे भगवन" हमारे भारत वर्ष में विद्धमान किसी भी धर्म संस्कृति में ये नहीं कहा है की गाय को मारो या काट के खाओ किन्तु कुछ असामाजिक तत्व एवं पैसो के लालची लोगो ने गाय को काट कर बेचना एक व्यवसाय बना रखा है.

ज्ञातव्य रहे वर्ष 2010 में श्री लुनिया ने धर्म की नगरी उज्जैन में गौ हत्या पर केंद्रित अंतरात्मा को झंझोर कर रख देने वाली मार्मिक फिल्म "जियो और जीने दो" का निर्माण कर पुरे देश में गौ रक्षा एवं गौ माता को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का अलख जगाया था जिसके चलते भारतवर्ष  के विभिन्न क्षेत्रो से विभिन्न धर्मो के लोगो के साथ ही कई मुस्लिम गौ रक्षा समिति एवं मुस्लिमजन ने भी गौ रक्षा के इस अभियान में सहयोग किया एवं मध्यप्रदेश फिल्म फेस्टिवल 2010 में 6 अवार्डो के साथ कई राज्यों में सम्मान से नवाजा गया. वर्ष 2011 में फिल्म की डीवीडी लॉन्च करने पर देश के विभिन्न क्षेत्रो से समाज सेवकों ने 4 लाख से अधिक डीवीडी क्रय कर वितरण किया एवं श्री लुनिया आज भी प्रोजेक्टर के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में फिल्म का मुफ्त प्रदर्शन कर जन-जाग्रति लाने का प्रयास किया जा रहा है गौ रक्षा के इस अभियान से जुड़ने के लिए फेसबुक पर https://www.facebook.com/rashtiryapashugaumata इस पेज को ज्यादा से ज्यादा लोग पसंद कर के गौ माता को राष्ट्रीय पशु घोषित करने में मदद प्रदान करें.

रविवार, 27 अप्रैल 2014

एक अध्ययन: पशुधन किसलिए बचाया जाए

सरल एवं पूर्ण दुष्प्रभाव-मुक्त उपचार
simple & absolutely side effectless remedy:

केस स्टडी हेतु आधारभूत आंकड़े
Base data for case study:

विदेश मंत्रालय के निवेश एवं प्रौद्योगिकी संवर्द्धन प्रभाग(आईटीपी) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष २०११-१२ के दौरान देश में २.१४ मिलियन मीट्रिक टन भैंस का मांस प्राप्त हुआ और उसका निर्यात करने से १५००० करोड़ रुपयों की निर्यात आय प्राप्त हुई.
According to figures released by i.t.p. Division, Ministry of External Affairs, Government of India, during 2011-12, 2.14 Million mt of buffalo meat was produced from the country and the export earnings were rs. 15000cr.


कृषि मंत्रालय के पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन विभाग द्वारा जारी ‘आधारभूत पशुपालन सांख्यिकी-२००६’ के अनुसार एक स्वस्थ भैंस से औसतन १२० किलो मांस प्राप्त होता है.
As per the Basic Animal Husbandry Statistics - 2006 released by Ministry of Agriculture, Department of Animal Husbandry, Dairies & Fisheries, Government of India, on an average 120kgs. of meat is available from a buffalo.

बाकी खाल, त्वचा, हड्डी, सींग, खुर, अन्य अंग एवं खून का वजन होता है. इसका आशय है कि २.१ मिलियन मीट्रिक टन भैंस का मांस प्राप्त करने हेतु १.७५ करोड़ भैंसों को क़त्ल किया गया होगा. The rest is the weight of its hides, skin, bone, horns, hoofs, other organs and blood. thus to obtain 2.1millionmt of buffalo meat 1.75cr buffaloes would have been slaughtered.

राज्यों के कानूनों में आयु आधारित प्रतिबन्ध अथवा उपयोगिता आधारित प्रतिबंधों के बावजूद आम तौर पर निर्यात के लिए क़त्ल की जाने वाली भैंसों की औसत आयु १० वर्ष से कम होती है. ताज़ा और स्वस्थ मांस पाने के लिए अनेक जवान भैंसों और पाड़ो को भी क़त्ल किया जाता है.
despite age-based restrictions in state laws or usefulness based restrictions; it is common practice that the average age of buffaloes slaughtered for export is <10years. in order to obtain tender and healthy meat, many young buffaloes and calves also are slaughtered.

भैंसों की औसतन आयु १८ से २० वर्ष की होती है. हालांकि, यदि औसत आयु १५ साल भी मान ली जाए तो भी लगभग सभी भैंसों को १० वर्ष से कम में ही क़त्ल कर दिया जाता है. भैंसों को उनके स्वाभाविक जीवनकाल समाप्त होने से पाँच वर्ष पहले ही क़त्ल कर दिया जाता है.
the average lifespan of buffaloes is 18 to 20years. however, even if average 15years is considered, though all most are slaughtered much below 10years. buffaloes are slaughtered at least 5years before their natural life span would have ended.

इन आंकड़ों के आधार पर, मुझे एक अध्ययन आपके सामने रखना है कि कैसे मवेशियों का अस्तित्व राष्ट्र एवं अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी है और क्यों हम इसे पशुधन कहते हैं?
Based on the above data, let me present one case study how the existence of cattle are useful to nation & economy & why we call it pashudhan.


() कृषि क्षेत्र को क्षति Loss to Agriculture Sector:
175लाख भैंसे प्रतिवर्ष क़त्ल की जाती हैं
एक भैंस प्रतिवर्ष 5.4 टन गोबर प्रतिवर्ष देती है.
अर्थात गोबर की कुल हानि =
175 x 5.4 = 945 लाख टन
1 टन गोबर  = 2 टन जैविक खाद .
 945 लाख टन गोबर =
1850 लाख तन जैविक खाद
1 एकड़ भूमि को ज़रूरत होती है > 3 टन जैविक खाद की  
अर्थात 1850लाख टन खाद से 630 लाख एकड़ कृषि भूमि

एक भैंस से एक वर्ष में ५.४ टन गोबर प्राप्त होता है. अतः १७५ लाख (निर्यात के लिए क़त्ल की जा रही) भैंसों से एक वर्ष में ५.४ टन प्रतिवर्ष की दर से 175 x 5.4 = 945 लाख टन गोबर प्राप्त होगा.
a buffalo yields 5.4tons of dung per annum. Thus 175Lakhs (Buffaloes slaughtered for export) buffaloes in a year at the rate of 5.4tons p.a. would yield 175 x 5.4 = 945lakh tons of dung.

जब गोबर को सम्मिश्रण अथवा अन्य विधि से जैविक खाद में परिवर्तित किया जाता है, तो प्राप्त होने वाला खाद दुगुना होता है. इसका आशय है कि ९४५ लाख टन गोबर से १८९० लाख टन जैविक खाद प्राप्त होगी.
When dung is converted into organic manure by composting or other process, manure obtained is double the quantity of dung. that means 945lakh tons of dung would get converted into 1890lakh tons of organic manure.

एक वर्ष में एक एकड़ भूमि को तीन टन जैविक खाद की ज़रूरतपड़ती है. इसका मतलब हुआ कि १८९० लाख टन खाद से ६३० लाख एकड़ कृषि भूमि की खाद की आवश्यता पूरी की जा सकती है.
an acre of land needs three tons of organic manure in a year. thus, 1890lakh tons can meet the manure requirements of 630lakh acres of agricultural land.

६३० लाख एकड़ अथवा २५२ लाख हेक्टेयर भूमि के लिए, रासायनिक उर्वरक (फर्टिलाइजर)  की आवश्यकता १४३ किलो प्रति हेक्टेयर है अर्थात कुल ३६०३ लाख टन उर्वरक (फर्टिलाइजर)  की ज़रूरत पड़ेगी.  यूरिया/अमोनिया उर्वरक (फर्टिलाइजर)  की सब्सिडीप्राप्त और नियंत्रित कीमत (वर्ष २०१२) रु.७३२०/- प्रति टन बैठती है, अर्थात उर्वरक (फर्टिलाइजर)  की लागत रु. २३६७ करोड़ होगी.
For 630lakh acres or 252lakh hectare of land, the chemical fertilizer requirement @ 143/-kg. per hectare, total will be 3603lakh tons. Considering the subsidized and controlled average price of urea/ammonia fertilizer (2012 prices) of Rs.7320/- per ton,
the fertilizer cost will be RS.2367CR.


1 एकड़ से 1382किलो खाद्यान्न की उपज

अर्थात 630लाख एकड़ x 1.382टन  =

871 लाख टन खाद्यान्न बिना उर्वरक (फर्टिलाइजर)  के उत्पन्न किया जा सकता है


एक एकड़ भूमि से औसतन १३८२ किलो खाद्यान्न प्राप्त  होता है. अतः  ६३० एकड़ कृषि भूमि से एक वर्ष में ६३० लाख x १.३८२ टन = ८७१ लाख टन खाद्यान्न उगाया जा सकता है, जिससे रासायनिक उर्वरक (फर्टिलाइजर)  पर लगने वाली भारी उत्पादन लागत की बचत होगी. .
The average foodgrains yield from an acre of land is 1,382kg. Thus, from 630lakh acres of agricultural land, in a year 630lakh x 1.382tons = 871lakh tones of foodgrains can be grown, saving the major/heaviest input cost of chemical fertilizer by using the free organic manure.

यदि हम खाद्यान्न, दालों अथवा चावल का औसत क्रय मूल्य ११ रुपये प्रति किलो (यह वह मूल्य है जो किसानों को मिलता है, नाकि उपभोक्ता द्वारा चुकाया जाने वाला क्रय मूल्य) ले लें, एक वर्ष में ८७१ लाख टन खाद्यान्न के उत्पादन की लागत को जबर्दस्त रूप से कम किया जा सकता है अर्थात ४०% से भी ज़्यादा.
if we consider the average procurement rate of RS.11/- per kg. (what the farmers get and not the price at which the consumer finally gets the foodgrain) for foodgrains, cereals, or rice, the cost of production 871LAKHS tons of foodgrains in a year shall reduce drastically i.e. > 40%.

खाद्यान्न से चारा अनुपात है 1:3 अर्थात

871लाख टन खाद्यान्न से

2,613 लाख टन चारा उत्पन्न होता है(871 x 3)


खाद्यान्न से चारे का कोर्स अनुपात १:३ है. अतः ८७१ लाख  टन खाद्यान्न से ८७१*३ अर्थात २६१३ लाख टन चारा उपलब्ध होगा. 
The ratio of coarse foodgrains to fodder is 1:3. Thus from 871lakh tons foodgrains, the fodder availability will be 871 x 3 i.e. 2613lakh tons.
एक भैंस को ज़रूरत होती है -> 15किलो चारा प्रतिदिन.
अर्थात 2,613 लाख टन चारे से 477 लाख भैंसों का पेट बिना खर्च के भरा जा सकता है 2,61,3000किलो * 365दिन) *( 15किलो चारा प्रतिदिन = 477लाख भैंसों का पेट भरा जा सकता है.)
एक भैंस को एक दिन में १५ किलो चारे की जरुरत पड़ती है. अतः २६१३ लाख टन चारे से ४७७ लाख भैंसों का पेट भरा जा सकता है. एक वर्ष में १७५ लाख भैंसों को क़त्ल किया जाता है और ४७७ लाख भैंसों के लिए पर्याप्त होने जितना चारा उत्पन्न किया जा सकता है. इस तरह यही भैंसें अपनी जरुरत के अनुसार चारा उत्पन्न करने में सहायक होती हैं.
a buffalo needs 15kg of fodder per day. thus from 2613lakh tons, 477lakh buffaloes per annum can be fed. the number of buffaloes slaughtered is 175lakhs and fodder sufficient for 477lakh buffaloes can be produced. thus these buffaloes help in growing fodder for their entire feeding requirement.

यदि देश को इतनी मात्रा में चारा उगाना पड़े और वह भी किसी खाद्यान्न के उप-उत्पाद के रूप में नहीं बल्कि एक पृथक उत्पाद के रूप में तो कोई भी कल्पना कर सकता है कि भूमि, खाद, और अन्य सामग्री की ज़रूरत पड़ेगी.  फसल उगाने के सही तरीके का इस्तेमाल करके और निर्यात के लिए भैंसों के वध पर रोक लगाकर, चारा बिना किसी अतिरिक्त लागत के बिना किसी विशेष प्रयास और अतिरिक्त भूमि के उपलब्ध हो जाएगा. 
if the country were to decide on growing this much quantum of fodder for the animals, not by way of a by-product of foodgrains but as a separate product by itself, one can imagine the requirement of land, requirement of manure and other inputs. by adopting proper cropping pattern and by imposing ban on slaughter of buffaloes for export, such fodder is available without any extra cost, extra effort or extra land).

जैसा कि ऊपर बताया गया है, भैंसों का संरक्षण ना केवल संरक्षित की जाने वाली भैंसों की चारा आवश्यकता को पूरा करने के लिए अधिक चारा उपलब्ध कराएगा बल्कि अन्य जानवरों के लिए भी चारा बचा रहेगा, जो कि जवान और दुधारू, भार-वाहक एवं प्रजनन की दृष्टि से उपयोगी होते हैं.(प्रकृति ने हमें कितनी शानदार व्यवस्था दी है पर दुर्भाग्य से हमने स्वयं प्रकृति के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा रखा है)
As explained hereinabove, preservation of the buffaloes will not only help in growing the fodder requirement of the buffaloes saved, but also generate surplus for other animals which are younger and considered useful from the angles of milch, draught and breeding capacities (what a wonderful arrangement nature have provided us. but unfortunately we have declared war against nature).

() रोजगार की दृष्टि से भैंसों के गोबर से एक वैकल्पिक लाभ:
An Alternate benefit from the dung of buffaloes from employment angle:


175Lakh Buffaloes slaughtered x 5.4Tons Dung p.a. = 945Lakhs Ton Dung per Year.
.*. from 945Lakhs Tons Dung, 472Lakhs Tons Dung Cakes can be provided. Average rate of Dung Cake = Rs.2/-Each.
.'. 47,20,00,00,000 x 2 = 94,40,00,00,000 i.e. 9,440Crores





A Woman's survival income Rs.2,500/- per month, i.e. 1250 Dung Cakes p.m. i.e. 15,000 Dung Cakes p.a.





Rs.9,440Crores can provide employment to 31,46,666 Woman in Rural Area with earning of Rs.30.000/- p.a., by selling just 50 Dung Cakes per day (25day per month).

जैसा कि पहले बताया जा चुका है १७५ लाख भैंसों से एक वर्ष में ९४५ लाख टनगोबर प्राप्त होता है. इस गोबर से ४७२ लाख टन सूखा गोबर प्राप्त होता है, सूखने पर गोबर का वज़न ५०% तक कम हो जाता है. गोबर से ग्रामीण क्षेत्र में कंडे/उपले बनाए जाते हैं और उनका इस्तेमाल घरेलु ईंधनके रूप में किया जाता है. औसतन एक कंडे/उपले का भार १ किलो होता है अतः ९४५ लाख टन गोबर से अर्थात ४७२ लाख टन सूखे गोबर से ४७२० करोड़ कंडे/उपले बनेंगे. यही कंडे ग्रामीण क्षेत्र में १-२ रुपये में बेचे जाते हैं और छोटे कस्बों में २.५ रुपये से ३ रुपये. यदि औसत मूल्य २ रुपये मानी जाए तो ९४४० करोड़ रुपयों की आय प्राप्त होगी.
as mentioned earlier, 175l.akh buffaloes yield 945lakh tons of dung in a year. this dung will yield 472lakh tons of dry matter (when dung dries up it loses 50% of its weight in moisture). dung is used in rural areas for making dung cakes to meet household fuel needs. the average weight of a dung cake is ikg. thus from 472lakh ton dung dry matter, 4720cr of dung cakes can be made. dung cakes are sold at 1 to 2 Rupees per piece in rural areas and Rs.2.50 to rs.3/- in small towns. if average price of rs.2/- is taken, it yields an income of
RS.9440CR.

ग्रामीण क्षेत्रों में, मुख्यतः महिलाएँ गोबर इकट्ठा करने और उससे कंडे बनाने का काम करती हैं, यदि गाँव में एक महिला की आजीविका के लिए प्रति माह २५०० रुपये की ज़रूरत मानी जाए तो उसे इतने रुपये कमाने के लिए १२५० कंडे बेचने होंगे और एक साल में १५००० कंडे.
In rural areas it is mainly women folk who are engaged in collecting dung and making dung cakes. if subsistence requirement of a woman in a village is taken as RS.2500/-per month, such woman will have to make and sell 1250 DUNG cakes in a month or 15000 in a year.

अतः ३००००/- रुपये प्रतिवर्ष/महिला की दर से ३१,४६,६६६ महिलाओं के लिए कुल आय ९४४० करोड़ रूपये प्रतिवर्ष होगी, यह रोजगार बिना किसी तरह के बुनियादी ढाँचे, निवेश और अन्य किसी अतिरिक्त भार के हो जाएगा.  
Thus,    at    the    rate    of    Rs.30,000/- p.a./women, total income works out to RS.9,440CR per year for 31,46,666 women by providing them an employment without any infrastructure or investment and burdening anybody!

इस विश्लेषण से इस बात के स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि मांस निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाना  और मांस निर्यात नीति का उन्मूलन करना अनेक तरह से अत्यंत लाभकारी है जैसे रोजगार पैदा करना,सतत राजस्व/आय में वृद्धि, बहुमूल्य नस्लों का परिरक्षण, पर्यावरण,जल, मृदा   एवं कृषियोग्य भूमि जैसे प्राकृतिक संसाधन का बचाव, वहनीय मूल्यों पर दूध की उपलब्धता, मांस क्षेत्र को दी जाने वाली सब्सिडी के भार से मुक्ति, सब्सिडी एवं कच्चे तेल एवं पेट्रोलियम उत्पादों की आयात लागत में भारी बचत, चालू खाते के घाटे में कमी, आयात और निर्यात के व्यापारिक अंतर को कम करना, ऊर्जा और बिजली का संरक्षण, खाद्यान्न के उत्पादन में तीव्र वृद्धि.    
The above analysis clearly indicates that banning meat export and abolition of meat export policy is manifold moue advantageous from the point of employment generation, sustainable revenue growth, preservation of precious breeds, environment, natural resources like Water, Soil & Fertility of arable land, Milk availability at affordable prices, complete relief from the burden of number subsidies to meat sector, huge saving on subsidy & import cost of crude & petroleum products, relief in current account deficiency and winding trade gap of import & export, conservation of energy & power, significant increase in production of food grains.

इसकी तुलना में, मांस निर्यात क्षेत्र से कितने लोगों को रोजगार और जीविका मिलेगी? इसके अतिरिक्त मांस निर्यात पर रोक लगाने के लिए सैकड़ों अन्य ठोस कारण हैं.
Compared to this, how many people can be provided employment and livelihood by the meat export sector? there are hundreds of more other most sustainable reasons for banning meat export.

और सरकार को उसको हो रही राजस्व और रोजगार की हानि की अधिक चिंता करनी चाहिए, जो कि मांस निर्यात पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाकर रोकी जा सकती है. 
And Govt, need not have to worry about it's loss of revenue & employment as it can be earned many fold more if slaughtering for export ban completely.

हमारी भारत सरकार वास्तविक,समग्र, सतत और गौरवपूर्ण विकास को हासिल करेगी.
Our India Govt, will also achieve real inclusive, sustainable, and prudence growth.

(ख) 
भारत को चहुमुखी विजय मिल सकती है INDIA CAN BE IN WIN-WIN SITUATION
Ø रासायनिक उर्वरक (फर्टिलाइजर)  के लिए दी जाने वाली १,३०,००० करोड़ एवं अनाज पर ४५००० करोड़ की वार्षिक सब्सिडी को जबर्दस्त रूप से कम किया जा सकता है.
Ø भारत के १२ करोड़ ग्रामीण परिवारों द्वारा ईंधन के लिए कंडे/उपले का प्रयोग करने से गैस/कैरोसिन पर खर्च किए जाने वाले ६०००० करोड़ रुपयों की बचत {ग्रामीण जनसँख्या को ६० करोड़ माना गया है [कुल जनसंख्या का ५० प्रतिशत] अर्थात १२ करोड़ परिवार एक वर्ष में ५००० रुपये कैरोसिन/गैस पर खर्च करते हैं}
Ø Annual Subsidy of rs.1,30,000Cr given for chemical fertilizers & Rs.45,000Cr for food can be substantially reduced.
Ø Annual saving of Rs.60,000Cr spent on fuel (Kerosene/Gas) by 12Cr families staying in rural india by using freely available dung cakes as fuel. (assuming rural population as 60cr people (50% of total population) i.e. 12cr families (assuming 5 persons in a family) spending at least rs.5,000/- p.a. on Kerosene/Gas).
Ø रासायनिक उर्वरक (फर्टिलाइजर) , डीज़ल,पेट्रोल पर खर्च कीं जाने वाली विदेशी मुद्रा की भारी बचत.
 Huge saving of forex which is spent on import of chemical fertilizers, diesel, petrol.
Ø गोबर और जलाऊ लकड़ी के ऊष्मादायक मूल्य की तुलना करने पर, एक भैंस का गोबर एक वर्ष में ६ वृक्षों को बचा सकता है, जिन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में जलाऊ लकड़ी के लिए काटा जाता है.
 Comparing the calorific value of firewood and dung fuel, one buffalo's dung can save 6 trees in a year, which are fell for firewood in rural areas!
Ø पशु आधारित परिवहन से ग्रामीण क्षेत्र में पेट्रोल-डीज़ल की खपत में भारी बचत  Huge savings in petrol & diesel consumption in rural areas by using cattle based transportation.
Ø रासायनिक उर्वरक (फर्टिलाइजर) के बदले गोबर की खाद का प्रयोग करने से भूमि बंजर होने बचेगी और उसकी उर्वरता बढ़ेगी.
 Saving the fertile land of the country from becoming barren lands due to replacement of dung manure by chemical fertilizers.
Ø लगभग ६ लाख आय पैदा करने वाले विकेंद्रीकृत, और स्वावलंबी केन्द्रों का संरक्षण जैसे गाँव जिनमें जीवन कृषि एवं पशुपालन सम्बन्धी ग्रामीण उद्योगों के इर्दगिर्द घूमता है.   Saving about six lakhs decentralized wealth generating, self-sufficient centres viz. villages, resolving around agriculture and animal husbandry related village industries.

सौजन्य एवं स्रोत: विनियोग परिवार मुंबई