गुरुवार, 24 मई 2012


सोने की चमक के पीछे का 'सच'

 बुधवार, 23 मई, 2012 BBC Hindi
सोने की तस्करी और अवैध खदानों में काम करने वालो के शोषण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र नए कदम चाहता है.
दुनिया भर में सोने की मांग तेज़ी से बढ़ रही है. लेकिन हर साल खदानों से निकलने वाले सोने में से आधा सोना कहां से आता है, इसका पता नहीं चल पाता.
मध्य अफ्रीका का देश कॉंगो सोना का बड़ा उत्पादक है, लेकिन सोने की तस्करी और अवैध खदानों में काम करने वालो के शोषण का बड़ा केंद्र भी बन गया है.

न्यामुरहाले नाम की इस जगह पर सोने की खदान में काम करने वाले 38-वर्षीय फॉस्टिन बहोग्वेरे लंबे समय से खदानों में काम कर रहे हैं. वो खुश हैं क्योंकि उन्हें खदान के अंदर सोना दिखा.बीबीसी के हंफ्री हॉक्सली अफ्रीकी देश डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में एक ऐसी खदान में पहुंचे जहां बच्चे काम करते हैं और जिसके मालिक सेना को कर देते हैं.
वो कहते हैं, "ये खदान मेरी मां और बाप है क्योंकि इसके बिना न तो मैं खाना खा सकता हूं और न ही अपने बच्चों के स्कूल की फीस दे सकता हूं."
लेकिन नए कानूनों के तहत बाल मज़दूरी और सेना को टैक्स देने की वजह से इस खदान को अवैध और भ्रष्ट घोषित कर दिया गया है.
खदान से निकले पत्थरों में सोने की पुष्टि होने के बाद उसकी खरीद-फरोख्त शुरु हो जाती है. क्रिस्टियन रिज़ो सोने के खरीदार हैं. रिज़ो कहते हैं, "अगर मुझे सोने मिलता है तो मै उसे किसी ऐसे व्यक्ति के पास ले जाऊंगा जो मुझे इसके लिए पैसा दे सकता है."

काला बाजार

कॉन्गो की इस खदान से सोने का सफर शुरु होता है जहां से वो दुनिया भर में पहुंचता है. सड़क और फिर विमान द्वारा पड़ोसी देशों से होता हुआ सोना अक्सर अंतरराष्ट्रीय काले बाज़ार में पहुंचता है.
काले बाज़ार का एक क्षेत्रिय केंद्र युगांडा हैसंयुक्त राष्ट्र के मुताबिक कॉन्गो के पड़ोसी देश युगांडा पहुंचने वाले सोने का महज़ 15 फीसदी ही रिकॉर्ड होता है यानी 85 फीसदी सोना अंतरराष्ट्रीय काला बाज़ार में पहुंचता है. और इस सोने की पहली मंज़िल मध्यपूर्व या एशिया होता है.
एडवर्ड सेक्येवा युगांडा में एक खनिज विश्लेषक हैं. वो बताते हैं, "कॉन्गो से सोना सीमा पर पहुंचता है और वहां से कंपाला, एंटेबे, दुबई और हॉन्गकॉन्ग पहुंचता है. इसमें से अधिकतर सोना अवैध है क्योंकि ये अघोषित सोना है."
लेकिन ये वैध-अवैध और नैतिकता पर बहस दूर कॉन्गो की खदानों तक नहीं पहुंचती. वहां बच्चे काम करते हैं और सेना को पैसा दिया जाता है.

बुधवार, 23 मई 2012

यह खूनी हीरा (ब्लड डायमंड) है क्या?

अफ्रीका महाद्वीप के कुछ देशों में विद्रोही लोग विभिन्न देशों की सरकारों का तख्ता पलटने के लिए हथियार खरीदते हैं लेकिन उन हथियारों का भुगतान हीरों से करते हैं। ये हीरे खदानों से अवैध तरीके से बंदूकों के बल पर खनन करवा कर निकलवाए जाते हैं। इन खदानों पर कब्जे के लिए जबर्दस्त खूनखराबा होता रहता है। 

सिएरा लियोन में दस वर्ष खूनखराबा हुआ जिसमें लाखों मारे गए। विद्रोही बंदूकों के बल पर खदानों से हीरे निकाल निकाल कर हथियार खरीदते रहे और लोग मारे जाते रहे। कुछ अन्य देशों
जैसे अंगोला, आइवरी कोस्ट, कोंगो में भी ऐसा ही हुआ। अवैध हीरों के बल पर खड़े विद्रोहियों और सरकारी फौजों की लड़ाई में लाखों नागरिक मारे गए। 

आखिरकार 2000 में
संयुक्त राष्ट्र संघ ने सख्त कार्रवाई करते हुए इन हीरों की खरीद बिक्री को अवैध घोषित कर दिय़ा। इन हीरों की खरीद बिक्री करने पर कड़े दंड का प्रावधान कर दिय़ा गय़ा। लाइबेरिय़ा के राष्ट्रपति को गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा चलाया जा रहा है। उसने सिएरा लियोन के विद्रोहियों से हीरे लेकर उन्हें हथियार दिए थे। 

आलोचकों का कहना है कि
संयुक्त राष्ट्र संघ ने इन हीरों की खरीद -बिक्री को अवैध घोषित करने का फैसला, दुनिया की सबसे बड़ी हीरा व्यापार कंपनी डी बियर्स के दबाव में लिया। डी बियर्स अपने ट्रेडिंग आर्मडायमंड ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन यानी डाट्रेका के द्वरा  विश्व भर में हीरों के कुल कारोबार में से 80 प्रतिशत  कारोबार करती है और सस्ते हीरों के चलते उसके काफी नुकसान हो रहा था।

बुधवार, 16 मई 2012


पर्याप्त भंडारण के अभाव में हर वर्ष अरबों रुपये के  अनाज और फल-सब्जी हो जाते हैं नष्ट
पर सरकार का ध्यान भंडार-गृह बनाने की बजाय नये-२ कत्लखानों को खोलने और उनको अरबों की सब्सिडी देने पर ज्यादा है
अनाज, फल और सब्जियों की महंगाई आम आदमी की रसोई का बजट बिगाड़ रही है। इसके उलट आंकड़े बताते हैं कि पर्याप्त भंडारण न होने की वजह से सालाना उत्पादन का १८ प्रतिशत फल-सब्जी नष्टहोते हैं इसका मूल्य ४४ हजार करोड़ रुपये बैठता है।

इसी तरह पिछले वर्ष २ करोड़ टन से ज़्यादा अनाज नष्टहो गया था और इस वर्ष भी इतना ही अनाज भण्डारण की कमी के कारण इस साल की बारिश में नष्टहोने वाला है। बड़ी ही शर्मनाक स्थिति है हमारे देश में, जबकि ३५% से अधिक जनसंख्या के पास दो जून की रोटी भी उपलब्ध नहीं हो पाती है और करोड़ों टन गेहूँ सड़ने के लिए खरीदा जा रहा.

भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फल और सब्जी उत्पादक है। खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री चरण दास महंत ने हाल ही में राज्यसभा में एक प्रश्न  के लिखित उत्तरमें यह जानकारी दी है। दूसरी हकीकत यह भी है कि पिछले कुछ सालों से खाद्य महंगाई में बढ़ोतरी के लिए इनके दामों में तेजी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अगर इनका सही से भंडारण हो तो न सिर्फ खाद्य महंगाई से निजात मिलेगी बल्कि करोड़ों गरीबों को पर्याप्त पोषक आहार मिल सकेगा। राष्ट्रीय न्यादर्श सर्वेक्षण संगठन (रान्यासस) अथवा [एनएसएसओ] ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ६० प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण मुफलिसी में जीते हैं। वे रोजाना सिर्फ ३५ रुपये ही खर्च पाते हैं। फलों और सब्जियों की ऊंची कीमतों के चलते उन्हें पर्याप्त पोषण नहीं मिल पा रहा है और वे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं।

थोक मूल्यों पर आधारित खाद्य महंगाई की दर मार्च में बढ़कर ९.९४ प्रतिशत हो गई है। यह फरवरी में ६.०७ प्रतिशत थी। इस दौरान सब्जियों की कीमतों में पिछले साल के इसी महीने के मुकाबले ३०.५७ प्रतिशत की तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। अप्रैल के आंकड़े जल्द ही आने वाले हैं। चरण दास महंत ने बताया कि वर्ष २०१०-११ में सात करोड़ ४८ लाख ७७ हजार टन फलों का उत्पादन हुआ है। वहीं, इस दौरान देश के किसानों ने १४ करोड़ ६५ लाख ५४ हजार टन सब्जियां उगाईं मगर शीतागार की कमी के चलते इनमें से १८ प्रतिशत फसल नष्टहो गई।
सरकार कत्लखाने ना खोले बल्कि जो अकूत धनराशि मांस-निर्यातकों को अनुदान और सब्सिडी के रूप में दी जा रही है उससे नये-२ भंडार-गृह बनवाए तभी अरबों रुपये की बर्बादी रुकेगी.
यह बड़ा ही मूर्खतापूर्ण है कि अनाज के भण्डारण के लिए नये-२ भंडार-घर बनाने के लिए सरकार के पास धन की कमी है पर नये कत्लखाने स्थापित करने, पुराने कत्लखानों का उन्नयन करने के लिए सरकार दिल खोलकर हम करदाताओं का धन लुटा रही.