बुधवार, 9 मार्च 2011

मांसाहार छोड़ने का समय आ गया है, अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँ

गाय/भैंस आदि दुधारू पशु जीवन भर हम मनुष्यों को दूध देते हैं और जब ये पशु बूढ़े हो जाते हैं या दूध देना बंद कर देते हैं तो इन्हें मांस के लिए कत्लखाने में कटने के लिए बेच दिया जाता है, क्या कोई अन्य जीव मनुष्य से अधिक कृतघ्न हो सकता है? शायद नहीं.

भारत जैसा अहिंसा प्रधान देश और हर दिन खुलते नए कत्लखाने. क्या हम चुप बैठे रहेंगे ? क्या हम जीवदया का अर्थ भूल चुके हैं? भारत सरकार ने ५३० नए कत्लखाने खोलने का प्रस्ताव किया है अगर जनता नहीं जागी तो ये सरकार नए अत्याधुनिक कत्लखाने खोल देगी. जागो कहीं देर ना हो जाए.
मनुष्य को जिंदा रहने के लिए मांसाहार की कतई आवश्यकता नहीं है पर आज मांसाहार के लिए प्रतिदिन करोड़ों पशुओं को बेरहमी से क़त्ल किया जा रहा है. एक अनुमान के अनुसार दुनियाभर में एक दिन में मांसाहार के लिए १५-१६ करोड़ पशुओं को मारा जाता है. (इसमें समुद्री जीवों मछली आदि की संख्या शामिल नहीं है.)   
पशुओं की निर्मम हत्याएँ, जंगलों का विनाश और प्रदूषण से हमारी प्रकृति माँ हर दिन मर रही है इसलिए वह भी इसका बदला लेती है उसका बदला सूखे, बाढ़, तूफ़ान, चक्रवात, सुनामी और भयंकर भूकंपों के रूप में सामने आ रहा है. यदि जल्दी ही इसके लिए समुचित उपाय नहीं किए गए तो परिणाम बहुत भयानक होंगे जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती.
वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि मांसाहार से आपके स्वास्थ्य को भीषण क्षति पहुँचती है. शाकाहारियों कि तुलना में मांसाहारियों को कैंसर, हृदयरोग, गुर्दे की खराबी आदि अनेक रोगों के होने का खतरा कई गुना अधिक होता है. पशुओं की हत्या करना अमानवीय एवं असभ्य कृत्य है.
मांसाहारी व्यक्ति हिंसक मानसिकता वाले होते हैं और जो लोग पशुओं की हत्याएँ करते हैं, वे सहज ही किसी मनुष्य की हत्या भी कर सकते हैं इस बात की सम्भावना उनमें प्रबल होती है, जबकि शाकाहारियों में ऐसा करने की सम्भावना बहुत कम होती है. इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि पशुओं को मारने वाले व्यक्ति सबसे ज्यादा हिंसक होते हैं. आतंकवाद और अलगाववाद के इस दुर्भाग्यपूर्ण युग में यह बात काफी महत्वपूर्ण है कि दुनियाभर के सारे शातिर अपराधी/क्रूर हत्यारे तथा सभी आतंकवादी ‘मांसाहारी’ ही हैं. इस बात की दूर-२ तक कोई संभावना नहीं है कि कोई आतंकवादी शाकाहारी हो.   
मनुष्य को खाने के लिए मांस का उत्पादन करने में भी कोई आर्थिक लाभ नहीं है, यह व्यर्थ की विनाशकारी कवायद भर है:
  • एक हैक्टेयर भूमि में २२४१७ कि.ग्रा. आलू उत्पन्न होते हैं. जबकि एक हैक्टेयर भूमि में सिर्फ १८५ किलो मांस ही पैदा किया जा सकता है.
  • १ किलो मांस के लिए १९००० लीटर पानी की आवश्कयता पड़ती है जबकि १ किलो गेहूँ के उत्पादन में सिर्फ १०० लीटर पानी की जरुरत होती है. आज दुनिया भर में पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही है. एक दिन के शाकाहार में सिर्फ १५०० लीटर पानी उपयोग होता है जबकि एकदिन के मांसाहार में १५००० लीटर!!!  इसका सीधा अर्थ है कि मांस खाने वाले व्यक्ति पानी की बर्बादी के लिए भी जिम्मेदार होते हैं.
  • पौधे पर आधारित प्रोटीन की तुलना में  मांसाहार आधारित प्रोटीन की एक कैलोरी के लिए ११ गुना ज्यादा जीवाश्म ईंधन का उपयोग होता है, इस तरह मांस के लिए जानवरों को पैदा करने से ऊर्जा का भारी नुकसान होता है.
  • यदि संसार का हर व्यक्ति शाकाहार को अपना ले तो दुनियाभर से भुखमरी खत्म हो जाएगी क्योंकि तब दुनिया में जनसँख्या की तुलना में लोगों के खाने के लिए दोगुना अनाज उपलब्ध हो जाएगा; गरीबी पूरी तरह खत्म हो जाएगी. वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) भी काफी नियंत्रण में आ जायेगा.
पृथ्वी-पर्यावरण-जीवदया के लिए शाकाहारपनाने का समय गया है. शाकाहार अपनाने और मांस का त्याग करने के एक महीने के अंदर आपको अपने स्वास्थ्य में भारी सुधार नज़र आने लगेगा. आपका मन-मस्तिष्क काफी हल्का हो जाएगा क्योंकि आप पर्यावरण और निर्दोष प्राणियों के संरक्षण के लिए अपना दायित्व समझ चुके हैं.

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