यह हिंदी की बहुत पुरानी कहावत है जिसे सभी ने सुना होगा, प्रयोग किया होगा, प्रयोग करते होंगे. यह कहावत शत-प्रतिशत सही है, विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है.
इस लेख को पढ़ने के बाद दो बातें हो सकती हैं. पहली, आपको यह जानकार दुःख होगा कि किसी ने अब तक आपको ये सारी बातें क्यों नहीं बतायी और आप तुरंत प्रयास करेंगे कि मांसाहार छोड़ दें, जानवरों को असहनीय कष्ट देकर या मारकर प्राप्त की जाने वाली चीज़ों का बहिष्कार कर दें? अथवा दूसरी बात, आप इस लेख को कूड़ेदान में डाल देंगे या डिलीट कर देंगे और वही करते रहेंगे जो आज तक करते आये हैं, क्योंकि आप अपनी सोच को ज्यादा महत्त्व नहीं देते और आपको मासूम पशुओं के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता जिसका अर्थ होगा कि आप दयाहीन, निष्ठुर और निहायती स्वार्थी इंसान हैं!!!
इस आलेख में कत्लखानों की सच्चाई को प्रस्तुत करने प्रयास किया गया है. आप नहीं जानते होंगे कि कत्लखानों की दीवारों में खिड़कियाँ नहीं होतीं.
हमारे देश में मांसाहार को प्रोत्साहन और अंडे को शाकाहार बताने का षड्यंत्र कई वर्षों से चल रहा है. भारत सरकार शुतुरमुर्ग, खरगोश, भेड़, बकरी और अन्य मवेशियों को मांस, अंडे एवं खाल के लिए पालने के लिए कई योजनाएँ चला रही है, ऐसे जानवर और अन्य बूढ़े जानवर कसाइयों को बेच दिए जाते हैं. छोटी-२ कम्पनियाँ लोगों को झूठे प्रलोभन देकर इन योजनाओं का प्रचार कर रही हैं, बड़े-बड़े हिंदी-अंग्रेजी के अखबारों में ये कम्पनियाँ हर दिन अपने विज्ञापन छपवाती हैं. म.प्र. के कुछ नामी अख़बारों नईदुनिया, दैनिक भास्कर, पत्रिका, राज एक्सप्रेस आदि में हर दिन ऐसे विज्ञापन छप रहे हैं.
कत्लखानों में इन प्राणियों के साथ जो कुछ भी होता है उसे कोई भी ‘इंसान’ उचित नहीं ठहरा सकता. जो इंसान नहीं है उनके बारे में कुछ कहा नही जा सकता. कत्लखानों में ये प्राणी अपने आसपास सिर्फ ‘मौत/क़त्ल’ की चीखें सुनते और सूँघते हैं. जब ये बेचारे जानवर जिंदा रहने के लिए संघर्ष करते रहते हैं, जिंदगी के एक-एक क्षण के लिए छटपटा रहे होते हैं तब कसाइयों को कुछ दिखाई नहीं देता सिर्फ मांस का उत्पादन पूरा हो और उनकी कंपनी लाभ कमाए उन्हें जानवरों की संवेदना और जिंदगी से कोई वास्ता नहीं होता, ऐसे लोग हिंसक और भावना शून्य हो जाते है और समाज/परिवार में अपराध भी करते पाए जाते हैं/पाए गए हैं क्योंकि हिंसा, मारकाट, रक्तपात उनकी आदत में आ जाता है.
देश में पशुरक्षा के कानून हैं ! पर ठीक से उनका क्रियान्वयन नहीं होता है, पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण के लिए बने कानूनों के प्रशासन और निगरानी में लगे विभाग के अधिकारी/ कर्मचारी और पुलिस को कानून की मखौल उड़ाते कसाइयों और कत्लखानों की पूरी खबर तो होती है पर वे कोई उनके खिलाफ ठोस कार्यवाही नहीं करते इसलिए इनके हौसले बुलंद हैं और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की आवाज़ दबा दी जाती है.
कानून के अनुसार कत्लखानों में जानवर की हत्या करने से पहले उसको बेहोश किया जाना आवश्यक है. कसाई कैसे करते हैं जानवरों को बेहोश? एक विधि है “कैप्टिव बोल्ट स्टनिंग”. पशु के माथे पर एक बंदूक रखी जाती है जिससे उसके दिमाग में एक धातु का सरिया शूट किया जाता है. क्या होगा यदि जानवर जिंदगी के लिए संघर्ष करे और बंदूक का निशाना चूक जाए? एकदम आसान, कसाई तब तक इस प्रक्रिया को दुहरायेगा जब तक कि निशाना सही जगह पर नहीं लग जाता. हैं कितना आसान तरीका है एक मूक पशु की हत्या करने का. क्योंकि आप मांस खा सकें, चमड़े के जूते पहन सकें और फर के कोट पहन सकें!!!
एक और विधि है, विद्युतीय बेहोशीकरण या इलेक्ट्रिकल स्टनिंग. इसमें जानवरों को झटका देकर मार दिया जाता है. परन्तु अगर बिजली का झटका ठीक से न लगे और जानवर छटपटाता रहे तो उसे और झटके दिए जाते हैं. कुछ भी करो सब चलेगा! कसाई को कानून से क्या लेना-देना
अगला है जानवरों को परंपरागत रूप से क़त्ल किया जाना, यह तरीका हमारे देश में सबसे ज्यादा चलन में है जिसमें पूरे होश में जानवर का गला काट दिया जाता है और खून की धाराएँ फूट पड़ती हैं और उस निर्दोष जानवर की कुछ सेकण्ड में ही मौत हो जाती है. सूअर, मुर्गियों, चूज़ों, बतख, हंस आदि को बिजली के झटके देकर मारा जाता है. अक्सर उनको जिंदा उबाल दिया जाता है या उनको खौलते पानी में डुबाकर मारा जाता है या उनके ऊपर खौलता पानी उंडेल दिया जाता है. जब आप मांस खाते हैं या चमड़े के जूते/चप्पल पहनते है तो क्या उन जानवरों की बददुआएँ आपका पीछा नहीं करतीं?
कई बार कत्लखानों के कसाई जिंदा जानवरों को दीवार पर फेंक कर मार डालते हैं, मुर्गी के शरीर से अंडा खींच के निकाल लिया जाता है, टर्की पक्षी के सिर को तोड़ डाला जाता है, ट्रांसपोर्ट के दौरान ट्रक के पिंजरों में पक्षियों के पैर टूट जाते हैं, उनके पंख बेकार और खून में लतपथ हो जाते हैं, अगर को पक्षी थ्रोट कटिंग मशीन से बच जाता है तब उसकी गर्दन तोड़ के अलग कर डी जाती है ताकि चिकन के उत्पादन में कोई कमी न आये.
कई बार जब कसाई क़त्ल के परंपरागत तरीके से ऊब जाते हैं तो वे जिंदा चूजों को दीवार पे दे मारते हैं या उनके पैर पकड़ कर उनका सिर दीवार या ज़मीन पर दे मारते हैं अथवा जिंदा पक्षियों पर कत्लखाने के कर्मचारी कूदते हैं. उन्हें अपने पैरों से कुचलकर मार डालते हैं . पुलिस और प्रशासन शिकायत मिलने पर भी अनदेखी करते रहते हैं. मुंबई के देवनार कत्लखाने में हरदिन कई ट्रक आते हैं जिनमें गौवंश (गाय-बैल-बछड़े आदि) को ठूँस-ठूँस कर लाया जाता है, गर्भवती गाय और मोटे-तगड़े बैलों को भी यहाँ क़त्ल किया जाता है, यह सारा कारोबार अवैध रूप से चालू है.
अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने दिल के अंदर झाँके और तय करें कि आप समस्या का एक भाग बनना चाहते हैं अथवा समाधान का हिस्सा.
MANUSHAY SHARIRIK RACHNA KE HISAB SE SHAKAHARI HAI BABA JAIGURUDEV, MATHURA BARABAR SHAKAHARI KA PRCHAR KAR RAHE HAI
जवाब देंहटाएं