गुरुवार, 10 मार्च 2011

भुला दिया बटुकेश्वर दत्त को

सुशील झा
किताब का कवर
बटुकेश्वर दत्त पर ये पहली किताब है जिसे अनिल वर्मा ने लिखा है.
भारत में स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों की उपेक्षा आम बात है और इसी श्रेणी में बटुकेश्वर दत्त का भी नाम लिया जा सकता है.
नवंबर 2010 में बटुकेश्वर दत्त की जन्म शताब्दी थी लेकिन इस दौरान किसी ने शायद ही बटुकेश्वर दत्त को याद किया होगा.
बटुकेश्वर दत्त पर न तो कोई डाक टिकट ही जारी हुआ है और न ही बड़े क्रांतिकारियों में ही उनका नाम शुमार किया जाता है.
भगत सिंह को छोड़ दें तो अधिकतर क्रांतिकारियों का यही हश्र हुआ है. इसी बात को ध्यान में रखते हुए अनिल वर्मा ने बटुकेश्वर दत्त पर एक किताब लिखी है.
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यह पुस्तक बटुकेश्वर दत्त पर लिखी पहली पुस्तक है.
पेशे से मजिस्ट्रेट अनिल वर्मा विस्मृत क्रांतिकारियों पर पहले भी लिख चुके हैं और राजगुरु पर उनकी किताब काफी चर्चित रही थी.
वो बताते हैं, ‘‘राजगुरु पर शोध के दौरान ही मुझे लगा कि बटुकेश्वर दत्त पर काम होना चाहिए. कई तथ्य पता लगे जो नए थे तो मैंने काम शुरु कर दिया. उनकी बेटी से मुलाक़ात की जो पटना के एक कॉलेज में पढ़ाती हैं.’’
बटुकेश्वर दत्त को कोई सम्मान नहीं दिया गया स्वाधीनता के बाद. निर्धनता की ज़िंदगी बिताई उन्होंने. पटना की सड़कों पर सिगरेट की डीलरशिप और टूरिस्ट गाइड का काम करके बटुकेश्वर ने जीवन यापन किया.
अनिल वर्मा, लेखक

बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ मिलकर 1929 में तत्कालीन ब्रितानी संसद में बम फेंका था और उसके साथ पर्चे भी. दोनों क्रांतिकारी वहां से भागे नहीं और गिरफ़्तारी भी दी.
अनिल वर्मा बताते हैं, ‘‘बटुकेश्वर दत्त का सबसे बड़ा काम यही कहा जा सकता है. आगरा में एक बम फैक्ट्री स्थापित की गई थी जिसमें बटुकेश्वर का बड़ा हाथ रहा. बम फेंकने के लिए उन्हें काला पानी की सज़ा दी गई. इससे पहले लाहौर में बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह और यतींद्र नाथ ने 144 दिनों की हड़ताल की. इस दौरान यतींद्र नाथ की मौत हो गई.’’
बटुकेश्वर दत्त देश की आज़ादी देखने के लिए बचे रहे लेकिन सारा जीवन उन्हें उपेक्षा में ही बिताना पड़ा.
अनिल वर्मा बताते हैं, ‘‘बटुकेश्वर दत्त को कोई सम्मान नहीं दिया गया स्वाधीनता के बाद. निर्धनता की ज़िंदगी बिताई उन्होंने. पटना की सड़कों पर सिगरेट की डीलरशिप और टूरिस्ट गाइड का काम करके बटुकेश्वर ने जीवन यापन किया. उनकी पत्नी मिडिल स्कूल में नौकरी करती थीं जिससे उनका घर चला.’’
अनिल बताते हैं कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे तो इसके लिए बटुकेश्वर दत्त ने भी आवेदन किया. परमिट के लिए जब पटना के कमिश्नर के सामने पेशी हुई तो कमिश्नर ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लाने को कहा.
हालांकि बाद में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को जब यह बात पता चली तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर जी से माफ़ी मांगी थी.
बटुकेश्वर जी का बस इतना ही सम्मान हुआ कि पचास के दशक में उन्हें एक बार चार महीने के लिए विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया.
अनिल वर्मा बताते हैं कि बटुकेश्वर दत्त का जीवन इसी निराशा में बीता और 1965 में उनकी मौत हो गई.
आज़ादी के साठ साल बाद बटुकेश्वर दत्त को एक किताब के ज़रिए याद तो किया गया लेकिन न जाने कितने ऐसे क्रांतिकारी हैं जिन पर अभी तक एक पर्चा भी नहीं लिखा गया है.

बुधवार, 9 मार्च 2011

मांसाहार छोड़ने का समय आ गया है, अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँ

गाय/भैंस आदि दुधारू पशु जीवन भर हम मनुष्यों को दूध देते हैं और जब ये पशु बूढ़े हो जाते हैं या दूध देना बंद कर देते हैं तो इन्हें मांस के लिए कत्लखाने में कटने के लिए बेच दिया जाता है, क्या कोई अन्य जीव मनुष्य से अधिक कृतघ्न हो सकता है? शायद नहीं.

भारत जैसा अहिंसा प्रधान देश और हर दिन खुलते नए कत्लखाने. क्या हम चुप बैठे रहेंगे ? क्या हम जीवदया का अर्थ भूल चुके हैं? भारत सरकार ने ५३० नए कत्लखाने खोलने का प्रस्ताव किया है अगर जनता नहीं जागी तो ये सरकार नए अत्याधुनिक कत्लखाने खोल देगी. जागो कहीं देर ना हो जाए.
मनुष्य को जिंदा रहने के लिए मांसाहार की कतई आवश्यकता नहीं है पर आज मांसाहार के लिए प्रतिदिन करोड़ों पशुओं को बेरहमी से क़त्ल किया जा रहा है. एक अनुमान के अनुसार दुनियाभर में एक दिन में मांसाहार के लिए १५-१६ करोड़ पशुओं को मारा जाता है. (इसमें समुद्री जीवों मछली आदि की संख्या शामिल नहीं है.)   
पशुओं की निर्मम हत्याएँ, जंगलों का विनाश और प्रदूषण से हमारी प्रकृति माँ हर दिन मर रही है इसलिए वह भी इसका बदला लेती है उसका बदला सूखे, बाढ़, तूफ़ान, चक्रवात, सुनामी और भयंकर भूकंपों के रूप में सामने आ रहा है. यदि जल्दी ही इसके लिए समुचित उपाय नहीं किए गए तो परिणाम बहुत भयानक होंगे जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती.
वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि मांसाहार से आपके स्वास्थ्य को भीषण क्षति पहुँचती है. शाकाहारियों कि तुलना में मांसाहारियों को कैंसर, हृदयरोग, गुर्दे की खराबी आदि अनेक रोगों के होने का खतरा कई गुना अधिक होता है. पशुओं की हत्या करना अमानवीय एवं असभ्य कृत्य है.
मांसाहारी व्यक्ति हिंसक मानसिकता वाले होते हैं और जो लोग पशुओं की हत्याएँ करते हैं, वे सहज ही किसी मनुष्य की हत्या भी कर सकते हैं इस बात की सम्भावना उनमें प्रबल होती है, जबकि शाकाहारियों में ऐसा करने की सम्भावना बहुत कम होती है. इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि पशुओं को मारने वाले व्यक्ति सबसे ज्यादा हिंसक होते हैं. आतंकवाद और अलगाववाद के इस दुर्भाग्यपूर्ण युग में यह बात काफी महत्वपूर्ण है कि दुनियाभर के सारे शातिर अपराधी/क्रूर हत्यारे तथा सभी आतंकवादी ‘मांसाहारी’ ही हैं. इस बात की दूर-२ तक कोई संभावना नहीं है कि कोई आतंकवादी शाकाहारी हो.   
मनुष्य को खाने के लिए मांस का उत्पादन करने में भी कोई आर्थिक लाभ नहीं है, यह व्यर्थ की विनाशकारी कवायद भर है:
  • एक हैक्टेयर भूमि में २२४१७ कि.ग्रा. आलू उत्पन्न होते हैं. जबकि एक हैक्टेयर भूमि में सिर्फ १८५ किलो मांस ही पैदा किया जा सकता है.
  • १ किलो मांस के लिए १९००० लीटर पानी की आवश्कयता पड़ती है जबकि १ किलो गेहूँ के उत्पादन में सिर्फ १०० लीटर पानी की जरुरत होती है. आज दुनिया भर में पानी की समस्या बढ़ती ही जा रही है. एक दिन के शाकाहार में सिर्फ १५०० लीटर पानी उपयोग होता है जबकि एकदिन के मांसाहार में १५००० लीटर!!!  इसका सीधा अर्थ है कि मांस खाने वाले व्यक्ति पानी की बर्बादी के लिए भी जिम्मेदार होते हैं.
  • पौधे पर आधारित प्रोटीन की तुलना में  मांसाहार आधारित प्रोटीन की एक कैलोरी के लिए ११ गुना ज्यादा जीवाश्म ईंधन का उपयोग होता है, इस तरह मांस के लिए जानवरों को पैदा करने से ऊर्जा का भारी नुकसान होता है.
  • यदि संसार का हर व्यक्ति शाकाहार को अपना ले तो दुनियाभर से भुखमरी खत्म हो जाएगी क्योंकि तब दुनिया में जनसँख्या की तुलना में लोगों के खाने के लिए दोगुना अनाज उपलब्ध हो जाएगा; गरीबी पूरी तरह खत्म हो जाएगी. वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) भी काफी नियंत्रण में आ जायेगा.
पृथ्वी-पर्यावरण-जीवदया के लिए शाकाहारपनाने का समय गया है. शाकाहार अपनाने और मांस का त्याग करने के एक महीने के अंदर आपको अपने स्वास्थ्य में भारी सुधार नज़र आने लगेगा. आपका मन-मस्तिष्क काफी हल्का हो जाएगा क्योंकि आप पर्यावरण और निर्दोष प्राणियों के संरक्षण के लिए अपना दायित्व समझ चुके हैं.

सोमवार, 7 मार्च 2011

Bhardwaj is not telling the truth on Anti Cow Slaughter Bill 2010

Karnataka’s Governor misled public: THE TRUTH IS OUT

Bengaluru, March 3, 2011.
Current Governor of Karnataka Mr. Hans Raj Bhardwaj has apparently been less than completely truthful to the people of Karnataka and the press.  On more than one occasion, he has said that the Anti-Cow slaughter Bill had been sent to the President of India. 
However, as per the RTI report received recently, the President’s office has not received the Bill till date.  This is clear evidence that the current governor of Karnataka, Mr. Hans Raj Bhardwaj, is supporting the butchers and certain political parties.
Because of all this duplicity, delay and prevarication, not to mention brazen and unconstitutional mendacity, numerous cows and their progeny have been slaughtered in our state; in addition, uncounted thousands of cattle have been smuggled out of the state.
 Copy of RTI report:
Copy of RTI Query 

शनिवार, 5 मार्च 2011

जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन

यह हिंदी की बहुत पुरानी कहावत है जिसे सभी ने सुना होगा, प्रयोग किया होगा, प्रयोग करते होंगे. यह कहावत शत-प्रतिशत सही है, विज्ञान भी इस बात को स्वीकार करता है.

इस लेख को पढ़ने के बाद दो बातें हो सकती हैं. पहली, आपको यह जानकार दुःख होगा कि किसी ने अब तक आपको ये सारी बातें क्यों नहीं बतायी और आप तुरंत प्रयास करेंगे कि मांसाहार छोड़ दें, जानवरों को असहनीय कष्ट देकर या मारकर प्राप्त की जाने वाली चीज़ों का बहिष्कार कर दें? अथवा दूसरी बात, आप इस लेख को कूड़ेदान में डाल देंगे या डिलीट कर देंगे और वही करते रहेंगे जो आज तक करते आये हैं, क्योंकि आप अपनी सोच को ज्यादा महत्त्व नहीं देते और आपको मासूम पशुओं के मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता जिसका अर्थ होगा कि आप दयाहीन, निष्ठुर और निहायती स्वार्थी इंसान हैं!!! 

इस आलेख में कत्लखानों की सच्चाई को प्रस्तुत करने प्रयास किया गया है. आप नहीं जानते होंगे कि कत्लखानों की दीवारों में खिड़कियाँ नहीं होतीं.

हमारे देश में मांसाहार को प्रोत्साहन और अंडे को शाकाहार बताने का षड्यंत्र कई वर्षों से चल रहा है. भारत सरकार शुतुरमुर्ग, खरगोश, भेड़, बकरी और अन्य मवेशियों को मांस, अंडे एवं खाल के लिए पालने के लिए कई योजनाएँ चला रही है, ऐसे जानवर और अन्य बूढ़े जानवर कसाइयों को बेच दिए जाते हैं. छोटी-२ कम्पनियाँ लोगों को झूठे प्रलोभन देकर इन योजनाओं का प्रचार कर रही हैं, बड़े-बड़े हिंदी-अंग्रेजी के अखबारों में ये कम्पनियाँ हर दिन अपने विज्ञापन छपवाती हैं. म.प्र. के कुछ नामी अख़बारों नईदुनिया, दैनिक भास्कर, पत्रिका, राज एक्सप्रेस आदि में हर दिन ऐसे विज्ञापन छप रहे हैं. 

कत्लखानों में इन प्राणियों के साथ जो कुछ भी होता है उसे कोई भी इंसान उचित नहीं ठहरा सकता. जो इंसान नहीं है उनके बारे में कुछ कहा नही जा सकता. कत्लखानों में ये प्राणी अपने आसपास सिर्फ मौत/क़त्ल की चीखें सुनते और सूँघते हैं. जब ये बेचारे जानवर जिंदा रहने के लिए संघर्ष करते रहते हैं, जिंदगी के एक-एक क्षण के लिए छटपटा रहे होते हैं तब कसाइयों को कुछ दिखाई नहीं देता सिर्फ मांस का उत्पादन पूरा हो और उनकी कंपनी लाभ कमाए उन्हें जानवरों की संवेदना और जिंदगी से कोई वास्ता नहीं होता, ऐसे लोग हिंसक और भावना शून्य हो जाते है और समाज/परिवार में अपराध भी करते पाए जाते हैं/पाए गए हैं क्योंकि हिंसा, मारकाट, रक्तपात उनकी आदत में आ जाता है.

देश में पशुरक्षा के कानून हैं ! पर ठीक से उनका क्रियान्वयन नहीं होता है, पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण के लिए बने कानूनों के प्रशासन और निगरानी में लगे विभाग के अधिकारी/ कर्मचारी और पुलिस को कानून की मखौल उड़ाते कसाइयों और कत्लखानों की पूरी खबर तो होती है पर वे कोई उनके खिलाफ ठोस कार्यवाही नहीं करते इसलिए इनके हौसले बुलंद हैं और पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की आवाज़ दबा दी जाती है.

कानून के अनुसार कत्लखानों में जानवर की हत्या करने से पहले उसको बेहोश किया जाना आवश्यक है. कसाई कैसे करते हैं जानवरों को बेहोश? एक विधि है कैप्टिव बोल्ट स्टनिंग. पशु के माथे पर एक बंदूक रखी जाती है जिससे उसके दिमाग में एक धातु का सरिया शूट किया जाता है. क्या होगा यदि जानवर जिंदगी के लिए संघर्ष करे और बंदूक का निशाना चूक जाए? एकदम आसान, कसाई तब तक इस प्रक्रिया को दुहरायेगा जब तक कि निशाना सही जगह पर नहीं लग जाता. हैं कितना आसान तरीका है एक मूक पशु की हत्या करने का. क्योंकि आप मांस खा सकें, चमड़े के जूते पहन सकें और फर के कोट पहन सकें!!!

एक और विधि है, विद्युतीय बेहोशीकरण या इलेक्ट्रिकल स्टनिंग. इसमें जानवरों को झटका देकर मार दिया जाता है. परन्तु अगर बिजली का झटका ठीक से न लगे और जानवर छटपटाता रहे तो उसे और झटके दिए जाते हैं. कुछ भी करो सब चलेगा! कसाई को कानून से क्या लेना-देना 

अगला है जानवरों को परंपरागत रूप से क़त्ल किया जाना, यह तरीका हमारे देश में सबसे ज्यादा चलन में है जिसमें पूरे होश में जानवर का गला काट दिया जाता है और खून की धाराएँ फूट पड़ती हैं और उस निर्दोष जानवर की कुछ सेकण्ड में ही मौत हो जाती है. सूअर, मुर्गियों, चूज़ों, बतख, हंस आदि को बिजली के झटके देकर मारा जाता है. अक्सर उनको जिंदा उबाल दिया जाता है या उनको खौलते पानी में डुबाकर मारा जाता है या उनके ऊपर खौलता पानी उंडेल दिया जाता है. जब आप मांस खाते हैं या चमड़े के जूते/चप्पल पहनते है तो क्या उन जानवरों की बददुआएँ आपका पीछा नहीं करतीं?
कई बार कत्लखानों के कसाई जिंदा जानवरों को दीवार पर फेंक कर मार डालते हैं, मुर्गी के शरीर से अंडा खींच के निकाल लिया जाता है, टर्की पक्षी के सिर को तोड़ डाला जाता है, ट्रांसपोर्ट के दौरान ट्रक के पिंजरों में पक्षियों के पैर टूट जाते हैं, उनके पंख बेकार और खून में लतपथ हो जाते हैं, अगर को पक्षी थ्रोट कटिंग मशीन से बच जाता है तब उसकी गर्दन तोड़ के अलग कर डी जाती है ताकि चिकन के उत्पादन में कोई कमी न आये. 

कई बार जब कसाई क़त्ल के परंपरागत तरीके से ऊब जाते हैं तो वे जिंदा चूजों को दीवार पे दे मारते हैं  या उनके पैर पकड़ कर उनका सिर दीवार या ज़मीन पर दे मारते हैं अथवा जिंदा पक्षियों पर कत्लखाने के कर्मचारी कूदते हैं. उन्हें अपने पैरों से कुचलकर मार डालते हैं . पुलिस और प्रशासन शिकायत मिलने पर भी अनदेखी करते रहते हैं. मुंबई के देवनार कत्लखाने में हरदिन कई ट्रक आते हैं जिनमें गौवंश (गाय-बैल-बछड़े आदि) को ठूँस-ठूँस कर लाया जाता है, गर्भवती गाय और मोटे-तगड़े बैलों को भी यहाँ क़त्ल किया जाता है, यह सारा कारोबार अवैध रूप से चालू है.

अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप अपने दिल के अंदर झाँके और तय करें कि आप समस्या का एक भाग बनना चाहते हैं अथवा समाधान का हिस्सा.