क्या भारतीय रेस्तरां में कानूनन गोमांस परोसा जा सकता है?
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तृप्ति लाहिरी
भारत के कई राज्य गाय की
रक्षा के लिए और शायद भैंसों की भी, कानून बनाने हेतु आगे आ रहे
हैं, ऐसे में इनका मांस खरीदना और बेचना कठिन होगा।
फिर भी कई बड़े भारतीय शहरों
में ऐसे रेस्तरां अक्सर दिखाई पड़ते हैं, जिनके भोज सूची (मेन्यू) में
गौ या भैंस के मांस के व्यजंन होते हैं और परोसे जाते हैं। लेकिन यह रहस्यमय मांस क्या
है? और क्या इसे भोज सूची (मेन्यू) में रखा जाना वैध है?
यह कहना कठिन है, हालांकि
यहां कोई ऐसा राष्ट्रीय कानून तो नहीं है, जो गौहत्या या गौ
मांस की बिक्री और उसे खाने पर प्रतिबंध लगाता हो। किसी भी राज्य का कानून
स्पष्टतया गौ मांस खाने पर प्रतिबंध नहीं लगाता।
लेकिन भारत में गाय की रक्षा
के लिए करीब दो दर्जन स्थानीय कानून मौजूद हैं-जिसमें इस पशु के उम्र, लिंग और
बल्कि भौगोलिक मूल को भी आंका जाता है- जो गोमांस को रेस्तरां के लिए कानूनी रूप
से स्त्रोत, भंडारण और प्रस्तुत करने हेतु थोड़ा बहुत कठिन
बनाते हैं।
“तीन वर्षों
तक रेस्तरां चलाने के बाद भी मैं इस बारे में ज्यादा जान पाने में सक्षम नहीं हो
पाया हूं,” दिल्ली में “गनपाउडर”
रेस्तरां चलाने वाले सतीश वारियर ने कहा। इस रेस्तरां में विशेष रूप
से कई दक्षिण भारतीय राज्यों के व्यजंन परोसे जाते हैं, जिनमें
केरल भी शामिल है, जहां गोमांस आम तौर पर परोसा जाता है। “गनपाउडर” में, ये व्यजंन
हिंदुओं की भावनाओं का ख्याल रखते हुए गोमांस के स्थान पर भैंस के मांस से बनाए
जाते हैं, गौरतलब है कि विशेष रूप से उत्तरी भारत में गोमांस
खाने पर त्योरियां चढ़ाई जाती हैं।
दिल्ली में, 1994 का एक
कानून गाय, बछड़े और बैल की हत्या पर प्रतिबंध लगाता
है-लेकिन भैंस पर नहीं। 1994 का प्रतिबंध दिल्ली के रेस्तरां
में गोमांस परोसने पर प्रतिबंध लगाता प्रतीत होता है- तब भी अगर पशु को वहां मारा
गया हो, जहां ये वैध है, मसलन केरल या
फिर ऑस्ट्रेलिया में, क्योंकि ये कानून कहता है कि “कोई भी व्यक्ति कृषिजन्य पशु का मांस अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं रखेगा
जिसको दिल्ली से बाहर मारा गया हो।” यह इसे बेचने या बनाने
हेतु कठिन बनाता है।
पंजाब और हरियाणा, जो 1966
से पहले एक राज्य थे, वहां एक सा उदार कानून
लागू है। इन राज्यों में, गाय या फिर बैल के मांस की बिक्री
प्रतिबंधित है-लेकिन इसमें सीलबंद डिब्बे और आयातित गोमांस शामिल नहीं है।
लिहाज़ा, इन राज्यों
में जब तक कोई रेस्तरां ये साबित कर सकता है कि उनका मांस राज्य में कहीं और से
लाया गया है, तो वो ना केवल भैंस बल्कि गोमांस भी परोस सकता
है। (हरियाणा और पंजाब का कानून, अकस्मात या फिर खुद की सुरक्षा
के लिए, गौवध को क्षमायोग्य मानता है, लेकिन
ये रेस्तरां के लिए मान्य नहीं है)
इसमें हैरानी की बात नहीं है
कि गुजरात में गाय और बैलों की हत्या पूरी तरह प्रतिबंधित है और इन पशुओं का मांस
रखना अवैध है, फिर चाहे मामला आयातित मांस का ही क्यों नहीं हो)।
इस बीच पश्चिम बंगाल में 14 वर्ष से
ऊपर की गाय, बैल और भैंस को मारना अनुचित नहीं माना जाता -और
इस तरह इसका मांस बेचना और परोसना वैध है।
कर्नाटक में, जहां
बैंगलोर शहर के रेस्तरां में गोमांस आम मिलता है, बैलों की
हत्या में कोई परेशानी नहीं–लेकिन गौवध अनुचित है- अगर उनकी
उम्र 12 वर्ष से ऊपर हो। हालांकि, एक
नए कानून के ज़रिए इसे बदलने की कोशिश की जा रही है, जिसके
तहत राज्य में किसी भी तरह के गोमांस की बिक्री को अवैध बनाया जाएगा।
“यह उत्पाद
इतना अनियंत्रित है कि पूरे बैंगलोर में बिकता है,” शहर के
एक भूमध्यसागरीय रेस्तरां के प्रबंधक ने कहा, जिनके रेस्तरां
में गोमांस परोसा जाता है। “मुझे हैरानी होगी अगर वो इसे भोज
सूची (मेन्यू) से हटा सकेगें,” उन्होंने आगे कहा।
कानून का एक पुराना संस्करण
भैंस के मांस पर भी प्रतिबंध लगाता था, जो अनपेक्षित है, हालांकि लगता है, राष्ट्रपति का अनुमोदन हासिल करने
की प्रक्रिया में इसे तब्दील किया जा रहा है।
रेस्तरां के प्रबंधक ने ये
भी कहा कि ज्यादातर गोमांस जो भारत के अंदर मंगाया जाता है, वो कदाचित 12
या फिर 15 वर्षीय पशु का होता है-संयुक्त
राष्ट्र के तीन से चार या उससे युवा की तुलना में। लेकिन उन्होंने कहा कि हालात
धीरे-धीरे बदल रहे हैं।
“यहां कुछ
भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता हैं –बहुत कम- जो आपको अच्छी गुणवत्ता
और अपेक्षाकृत युवा माल देगें,” उन्होंने कहा। “वो इसको लेकर नितांत गोपनीय होते हैं,” प्रबंधक ने
कहा।
केरल भारत का सबसे
गोमांस-प्रिय राज्य है। यहां ऐसा कोई कानून नहीं, जो गौवध पर प्रतिबंध लगाता हो,
भुना हुआ गोमांस, यहां का पसंदीदा व्यंजन है,
जो सड़क के किनारे खोखों और रिजॉर्ट बाज़ारों में आयुर्वेदिक स्पा
चिकित्सा और गोमांस व्यजंन दोनों के लिए ही उपलब्ध होता है।
ऑक्सफोर्ड में कानून में
डॉक्टरेट कर रहे अनूप सुरेन्द्रनाथ, जिन्होंने हाल ही में गोमांस
कानून के बारे में ब्लॉग लिखा कि वो महसूस करते हैं कि उनके गृह राज्य कर्नाटक की
योजना एक बेहद सख्त कानून के जरिए गुजरात को कहीं पीछे छोड़ने की है, वो कहते हैं कि भारत के गोमांस कानून के कुछ पहलू इतने व्यापक हैं कि
उन्हें कानूनी तौर पर चुनौती दी जा सकती है।
श्री सुरेन्द्रनाथ सुझाते
हैं कि विशेष रूप से बगैर अपवाद के दूसरे राज्यों अथवा देशों से आयातित गोमांस
रखने पर प्रतिबंध की कमज़ोर कानूनी कड़ी है, ये देखते हुए कि इन राज्यों के
कानून कृषि विज्ञान द्वारा निर्देशित हैं। हालांकि, इन
कानूनों को लागू करने के पीछे धार्मिक भावनाएं हैं, भारत के 1950
के संविधान का 48वां अनुच्छेद राज्यों को
आधुनिक और वैज्ञानिक धारा पर कृषि और पशुपालन के प्रयासस्वरूप गायों की सुरक्षा का
निर्देश देता है।
“ये कहना एक
कमज़ोर दलील होगी कि अपने राज्य की गायों के संरक्षण के लिए दूसरे राज्यों के
लोगों को गोमांस नहीं खाना चाहिए। अगर आप उनको पशुपालन हेतु बचा रहे हैं, ऐसे में मांस का स्त्रोत दुर्लभ होगा,” श्री
सुरेन्द्रनाथ ने कहा। “मैं अमेरिका या कहीं और से आयात कर
सकता हूं। इस तरह, मैं भारत में किसी भी गाय पर प्रभाव नहीं
डाल रहा,” उन्होंने कहा।
अहिंसा संघ का मत:
अहिंसा संघ एक पशु अधिकार
एवं कल्याण संगठन है जो भारत के विभिन्न राज्यों में पशुरक्षा के लिए कार्यरत है.
अहिंसा संघ किसी भी रूप में
पशुओं पर हो रहे अत्याचारों का, किसी भी छोटे-बड़े जीव चाहे मछली हो या बकरी अथवा
भैंस के मांस की खरीद-बिक्री का विरोध करता है पर वर्तमान में हम कानून द्वारा प्रदत्त
पशु अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
उक्त आलेख से अहिंसा संघ
बिल्कुल भी सहमत नहीं है परन्तु इसे प्रकाशित करने का केवल उद्देश्य यही है कि
पशु-प्रेमी इस बात को समझ सकें कि मांस व्यापारी (मांस-निर्यातक, रेस्तराँ-होटल
मालिक आदि) किस प्रकार कानून की आड़ में गैरकानूनी काम करते हैं, कानून की
कमजोरियों का फायदा उठाते हैं? हमारा उद्देश्य यह भी है कि देश के विभिन्न
प्रदेशों में पर्याप्त पशु अधिकार कानूनों का जो अभाव है, उसे आम जनता समझे और
माँग करे कि उनके राज्य की सरकारें ठोस और कठोर
पशु अधिकार कानूनों को पारित और लागू करवाएँ.
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