गुरुवार, 14 जून 2012

तेज़ी से बढ़ता अंग्रेजी और रोमन लिपि का इस्तेमाल


हिंदी के खबरिया चैनलों और अख़बारों में तेज़ी से बढ़ता अंग्रेजी और रोमन लिपि का इस्तेमाल


पिछले १-२ वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है, हिंदी के कई खबरिया चैनलों और अख़बारों (परन्तु सभी समाचार चैनल या अखबार नहीं) में अंग्रेजी और रोमन लिपि का इतना अधिक प्रयोग शुरू हो चुका है कि उन्हें हिंदी चैनल/हिंदी अखबार कहने में भी शर्म आती है. मैंने  कई संपादकों को लिखा भी कि अपने हिंदी समाचार चैनल/ अख़बार को अर्द्ध-अंग्रेजी चैनल / अख़बार(सेमी-इंग्लिश) मत बनाइये पर इन चैनलों/ अख़बारों  के कर्ताधर्ताओं को ना तो अपने पाठकों से कोई सरोकार है और ना ही हिंदी भाषा से, इनके लिए हिंदी बस कमाई का एक जरिया है.

मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में इनकी अक्ल ठिकाने जरूर आएगी क्योंकि आम दर्शक और पाठक के लिए हिंदी उनकी अपनी भाषा है, माँ भाषा है.

मुट्ठीभर लोग हिंदी को बर्बाद करने में लगे हैं

आज दुनियाभर के लोग हिंदी के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, विश्व की कई कम्पनियाँ/विवि/राजनेता हिंदी के प्रति रुचि दिखा रहे हैं पर भारत के मुट्ठीभर लोग हिंदी और भारत की संस्कृति का बलात्कार करने में लगे हैं क्योंकि इनकी सोच कुंद हो चुकी है इसलिए चैनलों/ अख़बारों के कर्ताधर्ता नाम और दौलत कमाते तो हिंदी के दम पर हैं पर गुणगान अंग्रेजी का करते हैं.

हिंदी को बढ़ावा देने या प्रसार करने या  इस्तेमाल को बढ़ावा देने में इन्हें शर्म आती है इनके हिसाब से भारत की हाई सोसाइटी में हिंदी की कोई औकात नहीं है और ये सब हिंदी की कमाई के दम पर उसी हाई सोसाइटी का अभिन्न अंग बन चुके हैं. इसलिए बार-बार नया कुछ करने के चक्कर में हिंदी का बेड़ा गर्क करने में लगे हुए हैं.

शुरू-२ में देवनागरी के अंकों (१२३४५६७८९०) को टीवी और मुद्रण से हकाला गया, दुर्भाग्य से ये अंक आज इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं और अब बारी है रोमन लिपि की घुसपैठ की, जो कि धीरे-२ शुरू हो चुकी है ताकि सुनियोजित ढंग से देवनागरी लिपि को भी धीरे-२ खत्म किया जाए. कई अखबार और चैनल आज ना तो हिंदी के अखबार/चैनल बचे हैं और न ही वे पूरी तरह से अंग्रेजी के चैनल बन पाए हैं. इन्हें आप हिंग्लिश या खिचड़ा कह सकते हैं.

ऐसा करने वाले अखबार और चैनल मन-ही-मन फूले नहीं समां रहे हैं, उन्होंने अपने-२ नये आदर्श वाक्य चुन लिए हैं जैसे- नये ज़माने का अखबार, यंग इण्डिया-यंग न्यूज़पेपर, नेक्स्ट-ज़ेन न्यूज़पेपर, इण्डिया का नया टेस्ट आदि-आदि. जैसे हिंदी का प्रयोग पुराने जमाने/ पिछड़ेपन की निशानी हो. यदि ये ऐसा मानते हैं तो अपने हिंदी अखबार/चैनल बंद क्यों नहीं कर देते? सारी हेकड़ी निकल जाएगी क्योंकि हम सभी जानते हैं हिंदी मीडिया समूहों द्वारा शुरू किये अंग्रेजी चैनलों/अख़बारों की कैसी हवा निकली हुई है. (हेडलाइंस टुडे/डीएनए/ डीएनए मनी /एचटी आदि).

क़ानूनी रूप से देखा जाए तो सरकारी नियामकों को इनके पंजीयन/लाइसेंस को रद्द कर देना चाहिए क्योंकि इन्होंने पंजीयन/लाइसेंस हिंदी भाषा के नाम पर ले रखा है. पर इसके लिए जरूरी है कि हम पाठक/दर्शक इनके विरोध में आवाज़ उठाएँ और अपनी शिकायत संबंधित सरकारी संस्था/मंत्रालय के पास जोरदार ढंग से दर्ज करवाएँ. कुछ लोग कह सकते हैं ‘अरे भाई इससे क्या फर्क पड़ता है? नये ज़माने के हिसाब से चलो, भाषा अब कोई मुद्दा नहीं है, जो इंग्लिश के साथ रहेगा वाही टिकेगा आदि.

हिंदी के कारण आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ताकत बढ़ रही है और भारत के  कई बड़े समाचार चैनल /पत्रिका/समाचार-पत्र हिंदीके कारण ही करोड़ों-अरबों के मालिक बने हैं, नाम और ख्याति पाए हैं पर ये सब होने के बावजूद आधुनिकता/नयापन/कठिनता के नाम पर  हिंदी प्रचलित शब्दों और हिंदी लिपि को अखबार/वेबसाइट/पत्रिका/चैनल हकाल रहे हैं धडल्ले से बिना किसी की परवाह किये रोमन लिपि का इस्तेमाल  कर रहे हैं.

हिंदी के शब्दों को कुचला जा रहा है

हिंदी में न्यूज़ और खबर के लिए एक बहुत सुन्दर शब्द है ‘समाचार’ जिसका प्रयोग  दूरदर्शन के अलावा किसी भी निजी चैनल पर वर्जित जान पड़ता है ऐसे ही सैकड़ों हिंदी शब्दों (समय, दर्शक, न्यायालय, उच्च शिक्षा, कारावास, असीमित, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, विराम, अधिनियम, ज्वार-भाटा, सड़क, विमानतल, हवाई-जहाज-विमान, मंत्री, विधायक, समिति, आयुक्त,पीठ, खंडपीठ, न्यायाधीश, न्यायमूर्ति, भारतीय, अर्थदंड, विभाग, स्थानीय, हथकरघा, ग्रामीण, परिवहन, महान्यायवादी, अधिवक्ता, डाकघर, पता, सन्देश, अधिसूचना, प्रकरण, लेखा-परीक्षा, लेखक, महानगर, सूचकांक, संवेदी सूचकांक, समाचार कक्ष, खेल-कूद/क्रीड़ा, डिब्बाबंद खाद्यपदार्थ, शीतलपेय, खनिज, परीक्षण, चिकित्सा, विश्वविद्यालय, प्रयोगशाला, प्राथमिक शाला, परीक्षा-परिणाम, कार्यालय, पृष्ठ, मूल्य आदि-आदि ना जाने कितने ऐसे शब्द  हैं जो अब टीवी/अखबार पर सुनाई/दिखाई ही नहीं देते हैं ) को डुबाया/कुचला जा रहा है, नये-नये अंग्रेजी के शब्द थोपे जा रहे हैं.

क्या हम अंगेजी चैनल पर हिंदी शब्दों और हिंदी लिपि के इस्तेमाल के बारे में सपने में भी सोच सकते हैं? कदापि नहीं.  फिर हिंदी समाचार चैनलों पर रोमन लिपि और अनावश्यक अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल क्यों ? क्या सचमुच हिंदी इतनी कमज़ोर और दरिद्र है? नहीं, बिल्कुल नहीं.

हमारी भाषा विश्व की सर्वश्रेष्ठ और अंग्रेजी के मुकाबले लाख गुना वैज्ञानिक भाषा है. जरूरत है हिंदी वाले इस बारे में सोचें.

आज जो स्थिति है उसे देखकर लगता है कि भारत की हिंदी भी फिजी हिंदी की तरह कुछ वर्षों में मीडिया की बदौलत रोमन में ही लिखी जाएगी!!!

मुझे हिंदी से प्यार है इसलिए बड़ी खीझ उठती है, दुःख होता है. डर भी लगता है कि कहीं हिंदी के अंकों (१,,,,,,,,०) की तरह धीरे-२ हमारी लिपि को भी हकाला जा रहा है. आज हिंदी अंक इतिहास बन चुके हैं, पर भला हो गूगल का जिसने इनको पुनर्जीवित कर दिया है.

हिंदी संक्षेपाक्षर क्या बला है इनको पता ही नहीं

हिंदी संक्षेपाक्षर सदियों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं, मराठी में तो आज भी संक्षेपाक्षर का प्रयोग भरपूर किया जाता है और नये-२ संक्षेपाक्षर बनाये जाते हैं पर आज का हिंदी मीडिया इससे परहेज़ कर रहा है, देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि का उपयोग कर रहा है. साथ ही मीडिया हिंदी लिपि एवं हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को हिंदी के प्रचार में बाधा मानता है, जो पूरी तरह से निराधार और गलत है.

मैं ये मानता हूँ कि बोलचाल की भाषा में हिंदी संक्षेपाक्षरों की सीमा है पर कम से कम लेखन की भाषा में इनके प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए और जब सरल हिंदी संक्षेपाक्षर उपलब्ध हो या बनाया जा सकता हो तो अंग्रेजी संक्षेपाक्षर का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.

मैं अनुरोध करूँगा कि नए-नए सरल हिंदी संक्षेपाक्षर बनाये जाएँ और उनका भरपूर इस्तेमाल किया जाये, मैं यहाँ कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची देना चाहता हूँ जो हैं तो पहले से प्रचलन में हैं अथवा इनको कुछ स्थानों पर इस्तेमाल किया जाता है पर उनका प्रचार किया जाना चाहिए, आपको कुछ अटपटे और अजीब भी लग सकते हैं, पर जब हम एक विदेशी भाषा अंग्रेजी के सैकड़ों अटपटे शब्दों/व्याकरण को स्वीकार कर चुके हैं तो अपनी भाषा के थोड़े-बहुत अटपटे संक्षेपाक्षरों को भी पचा सकते हैं बस सोच बदलने की ज़रूरत है.

हिंदी हमारी अपनी भाषा है, इसके विकास की जिम्मेदारी हम सब पर है और मीडिया की ज़िम्मेदारी सबसे ऊपर है.

हमारी भाषा के पैरोकार की उसे दयनीय और हीन बना रहे हैं, वो भी बेतुके बाज़ारवाद के नाम पर. आप लोग क्यों नहीं समझ रहे कि हिंदी का चैनल अथवा अखबार हिंदी में समाचार देखने/सुननेपढ़ने  के लिए होता है ना कि अंग्रेजी के लिए? उसके लिए अंग्रेजी के ढेरों अखबार और चैनल हमारे पास उपलब्ध हैं.

मैं इस लेख के माध्यम से इन सारे हिंदी के खबरिया चैनलों और अखबारों से विनती करता हूँ कि हमारी माँ हिंदी को हीन और दयनीय बनाना बंद कर दीजिये, उसे आगे बढ़ने दीजिये.

हिन्दीभाषी साथियों की ओर से  मेरा विनम्र निवेदन:
१. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में अंग्रेजी के अनावश्यक शब्दों का प्रयोग बंद होना चाहिए.
२. जहाँ जरूरी हो अंग्रेजी के शब्दों को सिर्फ देवनागरी में लिखा जाए रोमन में नहीं.
३. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

आम जनता से एक ज्वलंत प्रश्न:

क्या ऐसे समाचार चैनलों/अखबारों का बहिष्कार कर देना चाहिए जो हिन्दी का स्वरूप बिगाड़ने में लगे हैं ?


कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची
 राजनीतिक दल/गठबंधन/संगठन :

राजग: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [एनडीए]
संप्रग: संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन [यूपीए]
तेदेपा: तेलुगु देशम पार्टी [टीडीपी]
अन्ना द्रमुक: अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम[ अन्ना डीएमके]
द्रमुक: द्रविड़ मुनेत्र कषगम [डीएमके]
भाजपा: भारतीय जनता पार्टी [बीजेपी]
रालोद : राष्ट्रीय लोक दल [आरएलडी]
बसपा: बहुजन समाज पार्टी [बीएसपी]
मनसे: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [एमएनएस]
माकपा: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीएम]
भाकपा: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीआई]
राजद: राष्ट्रीय जनता दल [आरजेडी]
बीजद: बीजू जनता दल [बीजेडी]
तेरास: तेलंगाना राष्ट्र समिति [टीआरएस]
नेका: नेशनल कॉन्फ्रेन्स
राकांपा : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [एनसीपी]
अस: अहिंसा संघ
असे: अहिंसा सेना
गोजमुमो:गोरखा जन मुक्ति मोर्चा
अभागोली:अखिल भारतीय गोरखा लीग
मगोपा:महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी)
पामक : पाटाली मक्कल कच्ची (पीएमके)  
गोलिआ:गोरखा लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (जीएलओ)

संस्थाएँ
अंक्रिप = अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद [आईसीसी]
संसंस : संयुक्त संसदीय समिति [जेपीसी]
आस: आयोजन समिति [ओसी]
प्रेट्र:प्रेस ट्रस्ट [पीटीआई]
नेबुट्र:नेशनल बुक ट्रस्ट
अमुको : अंतर्राष्ट्रीय  मुद्रा कोष [आई एम एफ ]
भाक्रिनिम : भारतीय क्रिकेट नियंत्रण मंडल/ बोर्ड [बीसीसीआई]
केमाशिम : केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल/बोर्ड [सीबीएसई]
व्यापम: व्यावसायिक परीक्षा मंडल
माशिम: माध्यमिक शिक्षा मण्डल
राराविप्रा: राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण [एनएचएआई]
केअब्यू : केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो [सीबीआई]
मनपा: महानगर पालिका
दिननि : दिल्ली नगर निगम [एमसीडी]
बृमनपा: बृहन मुंबई महानगर पालिका [बीएमसी]
भाकृअप : भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद
भाखेम : भारतीय खेल महासंघ
भाओस : भारतीय ओलम्पिक संघ [आईओए]
मुमक्षेविप्रा: मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण [एमएमआरडीए ]
भापुस : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण [एएसआई]
क्षेपका : क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय [आरटीओ]
क्षेपा: क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी [आरटीओ]
कर: कम्पनी रजिस्ट्रार [आरओसी]
जनवि: जवाहर नवोदय विद्यालय
नविस : नवोदय विद्यालय समिति
सरां: संयुक्त राष्ट्र
राताविनि:राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम [एनटीपीसी]
रासंनि:राष्ट्रीय संस्कृति निधि [एनसीएफ ]
सीसुब: सीमा सुरक्षा बल [बीएसएफ]
रारेपुब: राजकीय रेलवे पुलिस बल
इविप्रा : इन्दौर विकास प्राधिकरण [आईडीए]
देविप्रा: देवास विकास प्राधिकरण
दिविप्रा : दिल्ली विकास प्राधिकरण [डीडीए]
त्वकाब : त्वरित कार्य बल
राराक्षे : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र [एनसीआर]
भाजीबीनि : भारतीय जीवन बीमा निगम [एलआईसी]
भारिबैं: भारतीय रिज़र्व बैंक [आरबीआई]
भास्टेबैं: भारतीय स्टेट बैंक [एसबीआई]
औसुब : औद्योगिक सुरक्षा बल
अभाआस:अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान [एम्स]
नाविमनि: नागर विमानन महानिदेशालय [डीजीसीए]  
अंओस: अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी)
रासूविके: राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र [एनआईसी]
विजांद: विशेष जांच दल [एसआईटी]
भाप्रविबो:भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड [सेबी]
केरिपुब: केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल [सीआरपीएफ]
भाअअस: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो]
भाबाकप: भारतीय बाल कल्याण परिषद
केप्रकबो: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड [सीबीडीटी]
केसआ:केंद्रीय सतर्कता आयुक्त [सीवीसी]
भाप्रस: भारतीय प्रबंध संस्थान [आई आई एम]
भाप्रौस : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान [आई आई टी ]
रारेपु:राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी)

अन्य :
मंस : मंत्री समूह
जासके : जागरण सम्वाद केन्द्र
जाससे:जागरण समाचार सेवा
अनाप्र: अनापत्ति प्रमाणपत्र
इआप: इलेक्ट्रोनिक आरक्षण पर्ची
राग्रास्वामि : राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम]
कृपृउ : कृपया पृष्ठ उलटिए
रासामि : राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
रनाटै मार्ग  : रवीन्द्रनाथ टैगोर मार्ग
जलाने मार्ग: जवाहर लाल नेहरु मार्ग
अपिव: अन्य पिछड़ा वर्ग [ओबीसी]
अजा: अनुसूचित जाति [एससी]
अजजा: अनुसूचित जन जाति [एसटी]
टेटे : टेबल टेनिस
मिआसा- मिथाइल आइसो साइनाइट
इवोम- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन [ईवीएम]
ऑटिवेम: ऑटोमैटिक टिकट वेण्डिंग मशीन
स्वगम: स्वचालित गणना मशीन  [एटीएम]
ऑटैम : ऑटोमेटिक टैलर मशीन [एटीएम]
यूका:यूनियन कार्बाइड
मुम: मुख्यमंत्री
प्रम : प्रधान मंत्री
विम: वित्तमंत्री/ विदेश मंत्री/मंत्रालय
रम : रक्षा मंत्री/ मंत्रालय
गृम : गृह मंत्री/ मंत्रालय
प्रमका: प्रधान मंत्री कार्यालय [पीएमओ]
शिगुप्रक:शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी [एसजीपीसी]  
रामखे:राष्ट्रमंडल खेल [सीडब्ल्यूजी]
पुमनि:पुलिस महानिदेशक [डीजीपी] 
जहिया:जनहित याचिका [पीआइएल]
गैनिस: गैर-निष्पादक सम्पतियाँ (एनपीए)
सभागप:समर्पित भाड़ा गलियारा परियोजना
सानियो: सामूहिक निवेश योजना [सीआईएस)  
अमलेप:अंकेक्षक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)
सराअ :संयुक्त राज्य अमरीका  [यूएसए]
आक: आयकर
सेक : सेवाकर
वसेक : वस्तु एवं सेवा कर [जीएसटी]
केविक: केन्द्रीय विक्रय कर [सीएसटी]
मूवक: मूल्य वर्द्धित कर [वैट]
सघउ : सकल घरेलु उत्पाद [जीडीपी]
नआअ: नगद आरक्षी अनुपात [सीआरआर]
प्रमग्रासयो: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
विस: वित्त समिति, विधानसभा, वित्त सचिव
प्रस: प्रचार समिति
व्यस :व्यवस्था समिति
न्याम: न्यासी मण्डल
ननि : नगर निगम
नपा: नगर पालिका
नप: नगर पंचायत
मनपा : महा नगर पालिका
भाप्रा: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग
भापाके : भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र
केंस: केंद्र सरकार
भास: भारत सरकार
रास: राज्य सरकार/राज्यसभा
मिटप्रव: मिट्रिक टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) 

सानिभा: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) 

निरह: निर्माण-रखरखाव-हस्तान्तरण (ओएमटी)

निपह: निर्माण-परिचालन-हस्तान्तरण  (बीओटी)

तीगग: तीव्र गति गलियारा  (हाई स्पीड कोरिडोर)

भाविकांस: भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ



फ़िल्में :
ज़िनामिदो : जिंदगी ना मिलेगी दोबारा [ज़ेएनएमडी]
दिदुलेजा: दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे [डीडीएलजे]
पासिंतो :पान सिंह तोमर

धारावाहिक:
कुलोक : कुछ तो लोग कहेंगे, जीइकाना: जीना इसी का नाम है,  दीबाह: दीया और बाती हम

धन्यवाद सहित,
प्रवीण कुमार जैन,
कंपनी सचिव, नवी मुम्बई  

मंगलवार, 5 जून 2012


 

क्या भारतीय रेस्तरां में कानूनन गोमांस परोसा जा सकता है?
- तृप्ति लाहिरी

भारत के कई राज्य गाय की रक्षा के लिए और शायद भैंसों की भी, कानून बनाने हेतु आगे आ रहे हैं, ऐसे में इनका मांस खरीदना और बेचना कठिन होगा।
फिर भी कई बड़े भारतीय शहरों में ऐसे रेस्तरां अक्सर दिखाई पड़ते हैं, जिनके भोज सूची (मेन्यू) में गौ या भैंस के मांस के व्यजंन होते हैं और परोसे जाते हैं। लेकिन यह रहस्यमय मांस क्या है? और क्या इसे भोज सूची (मेन्यू) में रखा जाना वैध है?
यह कहना कठिन है, हालांकि यहां कोई ऐसा राष्ट्रीय कानून तो नहीं है, जो गौहत्या या गौ मांस  की बिक्री और उसे खाने पर प्रतिबंध लगाता हो। किसी भी राज्य का कानून स्पष्टतया गौ मांस  खाने पर प्रतिबंध नहीं लगाता।
लेकिन भारत में गाय की रक्षा के लिए करीब दो दर्जन स्थानीय कानून मौजूद हैं-जिसमें इस पशु के उम्र, लिंग और बल्कि भौगोलिक मूल को भी आंका जाता है- जो गोमांस को रेस्तरां के लिए कानूनी रूप से स्त्रोत, भंडारण और प्रस्तुत करने हेतु थोड़ा बहुत कठिन बनाते हैं।
तीन वर्षों तक रेस्तरां चलाने के बाद भी मैं इस बारे में ज्यादा जान पाने में सक्षम नहीं हो पाया हूं,” दिल्ली में गनपाउडररेस्तरां चलाने वाले सतीश वारियर ने कहा। इस रेस्तरां में विशेष रूप से कई दक्षिण भारतीय राज्यों के व्यजंन परोसे जाते हैं, जिनमें केरल भी शामिल है, जहां गोमांस आम तौर पर परोसा जाता है। गनपाउडरमें, ये व्यजंन हिंदुओं की भावनाओं का ख्याल रखते हुए गोमांस के स्थान पर भैंस के मांस से बनाए जाते हैं, गौरतलब है कि विशेष रूप से उत्तरी भारत में गोमांस खाने पर त्योरियां चढ़ाई जाती हैं।
दिल्ली में, 1994 का एक कानून गाय, बछड़े और बैल की हत्या पर प्रतिबंध लगाता है-लेकिन भैंस पर नहीं। 1994 का प्रतिबंध दिल्ली के रेस्तरां में गोमांस परोसने पर प्रतिबंध लगाता प्रतीत होता है- तब भी अगर पशु को वहां मारा गया हो, जहां ये वैध है, मसलन केरल या फिर ऑस्ट्रेलिया में, क्योंकि ये कानून कहता है कि कोई भी व्यक्ति कृषिजन्य पशु का मांस अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं रखेगा जिसको दिल्ली से बाहर मारा गया हो।यह इसे बेचने या बनाने हेतु कठिन बनाता है।
पंजाब और हरियाणा, जो 1966 से पहले एक राज्य थे, वहां एक सा उदार कानून लागू है। इन राज्यों में, गाय या फिर बैल के मांस की बिक्री प्रतिबंधित है-लेकिन इसमें सीलबंद डिब्बे और आयातित गोमांस शामिल नहीं है।
लिहाज़ा, इन राज्यों में जब तक कोई रेस्तरां ये साबित कर सकता है कि उनका मांस राज्य में कहीं और से लाया गया है, तो वो ना केवल भैंस बल्कि गोमांस भी परोस सकता है। (हरियाणा और पंजाब का कानून, अकस्मात या फिर खुद की सुरक्षा के लिए, गौवध को क्षमायोग्य मानता है, लेकिन ये रेस्तरां के लिए मान्य नहीं है)
इसमें हैरानी की बात नहीं है कि गुजरात में गाय और बैलों की हत्या पूरी तरह प्रतिबंधित है और इन पशुओं का मांस रखना अवैध है, फिर चाहे मामला आयातित मांस का ही क्यों नहीं हो)।
इस बीच पश्चिम बंगाल में 14 वर्ष से ऊपर की गाय, बैल और भैंस को मारना अनुचित नहीं माना जाता -और इस तरह इसका मांस बेचना और परोसना वैध है।
कर्नाटक में, जहां बैंगलोर शहर के रेस्तरां में गोमांस आम मिलता है, बैलों की हत्या में कोई परेशानी नहींलेकिन गौवध अनुचित है- अगर उनकी उम्र 12 वर्ष से ऊपर हो। हालांकि, एक नए कानून के ज़रिए इसे बदलने की कोशिश की जा रही है, जिसके तहत राज्य में किसी भी तरह के गोमांस की बिक्री को अवैध बनाया जाएगा।
यह उत्पाद इतना अनियंत्रित है कि पूरे बैंगलोर में बिकता है,” शहर के एक भूमध्यसागरीय रेस्तरां के प्रबंधक ने कहा, जिनके रेस्तरां में गोमांस परोसा जाता है। मुझे हैरानी होगी अगर वो इसे भोज सूची (मेन्यू) से हटा सकेगें,” उन्होंने आगे कहा।
कानून का एक पुराना संस्करण भैंस के मांस पर भी प्रतिबंध लगाता था, जो अनपेक्षित है, हालांकि लगता है, राष्ट्रपति का अनुमोदन हासिल करने की प्रक्रिया में इसे तब्दील किया जा रहा है।
रेस्तरां के प्रबंधक ने ये भी कहा कि ज्यादातर गोमांस जो भारत के अंदर मंगाया जाता है, वो कदाचित 12 या फिर 15 वर्षीय पशु का होता है-संयुक्त राष्ट्र के तीन से चार या उससे युवा की तुलना में। लेकिन उन्होंने कहा कि हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं।
यहां कुछ भरोसेमंद आपूर्तिकर्ता हैं बहुत कम- जो आपको अच्छी गुणवत्ता और अपेक्षाकृत युवा माल देगें,” उन्होंने कहा। वो इसको लेकर नितांत गोपनीय होते हैं,” प्रबंधक ने कहा।
केरल भारत का सबसे गोमांस-प्रिय राज्य है। यहां ऐसा कोई कानून नहीं, जो गौवध पर प्रतिबंध लगाता हो, भुना हुआ गोमांस, यहां का पसंदीदा व्यंजन है, जो सड़क के किनारे खोखों और रिजॉर्ट बाज़ारों में आयुर्वेदिक स्पा चिकित्सा और गोमांस व्यजंन दोनों के लिए ही उपलब्ध होता है।
ऑक्सफोर्ड में कानून में डॉक्टरेट कर रहे अनूप सुरेन्द्रनाथ, जिन्होंने हाल ही में गोमांस कानून के बारे में ब्लॉग लिखा कि वो महसूस करते हैं कि उनके गृह राज्य कर्नाटक की योजना एक बेहद सख्त कानून के जरिए गुजरात को कहीं पीछे छोड़ने की है, वो कहते हैं कि भारत के गोमांस कानून के कुछ पहलू इतने व्यापक हैं कि उन्हें कानूनी तौर पर चुनौती दी जा सकती है।
श्री सुरेन्द्रनाथ सुझाते हैं कि विशेष रूप से बगैर अपवाद के दूसरे राज्यों अथवा देशों से आयातित गोमांस रखने पर प्रतिबंध की कमज़ोर कानूनी कड़ी है, ये देखते हुए कि इन राज्यों के कानून कृषि विज्ञान द्वारा निर्देशित हैं। हालांकि, इन कानूनों को लागू करने के पीछे धार्मिक भावनाएं हैं, भारत के 1950 के संविधान का 48वां अनुच्छेद राज्यों को आधुनिक और वैज्ञानिक धारा पर कृषि और पशुपालन के प्रयासस्वरूप गायों की सुरक्षा का निर्देश देता है।
ये कहना एक कमज़ोर दलील होगी कि अपने राज्य की गायों के संरक्षण के लिए दूसरे राज्यों के लोगों को गोमांस नहीं खाना चाहिए। अगर आप उनको पशुपालन हेतु बचा रहे हैं, ऐसे में मांस का स्त्रोत दुर्लभ होगा,” श्री सुरेन्द्रनाथ ने कहा। मैं अमेरिका या कहीं और से आयात कर सकता हूं। इस तरह, मैं भारत में किसी भी गाय पर प्रभाव नहीं डाल रहा,” उन्होंने कहा।
अहिंसा संघ का मत:
अहिंसा संघ एक पशु अधिकार एवं कल्याण संगठन है जो भारत के विभिन्न राज्यों में पशुरक्षा के लिए कार्यरत है.
अहिंसा संघ किसी भी रूप में पशुओं पर हो रहे अत्याचारों का, किसी भी छोटे-बड़े जीव चाहे मछली हो या बकरी अथवा भैंस के मांस की खरीद-बिक्री का विरोध करता है पर वर्तमान में हम कानून द्वारा प्रदत्त पशु अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
उक्त आलेख से अहिंसा संघ बिल्कुल भी सहमत नहीं है परन्तु इसे प्रकाशित करने का केवल उद्देश्य यही है कि पशु-प्रेमी इस बात को समझ सकें कि मांस व्यापारी (मांस-निर्यातक, रेस्तराँ-होटल मालिक आदि) किस प्रकार कानून की आड़ में गैरकानूनी काम करते हैं, कानून की कमजोरियों का फायदा उठाते हैं? हमारा उद्देश्य यह भी है कि देश के विभिन्न प्रदेशों में पर्याप्त पशु अधिकार कानूनों का जो अभाव है, उसे आम जनता समझे और माँग करे कि उनके राज्य की सरकारें ठोस और कठोर  पशु अधिकार कानूनों को पारित और लागू करवाएँ.