मंगलवार, 27 नवंबर 2012

नींबू (सिट्रस) कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए चमत्कारी उत्पाद है


आपको केवल इतना भर करना है, एक नीम्बू की पतली-२ दो-तीन परतें जैसी काट लीजिए और पीने के पानी से भरे गिलास में मिला दीजिए. अब यह पानी ‘क्षारीय जल’ अथवा ऐल्कलाइन वाटर बन गया है . दिनभर और अधिक पानी डालकर इसका सेवन करते रहिये.  


औषधि विज्ञान में नयी खोजकैंसर पर प्रभावी

ध्यान पूर्वक पढ़ें और स्वयं निर्णय लें

नींबू (सिट्रस) कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिए चमत्कारी उत्पाद है. रसायन चिकित्सा (कीमोथैरेपी) से १०००० गुना ज्यादा शक्तिशाली है.  पर हम लोग इसके बारे में कुछ क्यों नहीं जानतेक्योंकि बहुत सी प्रयोगशालाएँ इस बात में दिलचस्पी ले रही हैं कि इसके सिंथेटिक विकल्प बाजार में लाए जाएँ और भरी मुनाफ़ा कमाया जाए. अब आप अपने किसी दोस्त या फिर रिश्तेदार को नीम्बूरस के कैंसर जैसे घातक रोग पर अतिप्रभावशाली होने के बारे में बता कर उनकी सहायता कर सकते हैं।

इसका स्वाद भी बढ़िया होता है और यह रसायन चिकित्सा के भयानक परिणामों से भी मुक्त होता है। इस रहस्य को छुपा कर रखने से ना जाने कितने लोग मरते रहेंगे ताकि बड़ी-बड़ी कम्पनियों के करोड़ों-अरबों रुपये के मुनाफ़े पर कोई असर ना पड़ेजैसा की आप जानते हैं नींबू  का पेड़ अपनी ढेरों प्रजातियों के लिए जाना जाता है। इसका फल कई तरह से खाया जा सकता है: आप इसका सत्व खा सकते हैंरस पी सकते हैंनींबू पानी ले सकते हैं या फिर सरबत बना सकते हैंसब्जी-दाल में डाल कर खा सकते हैं। इसमें ढेर सारे गुण मौजूद हैं पर सबसे महत्वपूर्ण है कि यह पुटक अथवा सिस्ट (999(cysts) और अर्बुद (tumors) पर असरकारक है।

नीम्बू हर प्रकार के कैंसर पर असर करता है यह बात सिद्ध हो चुकी है. कुछ लोग मानते हैं कि यह सभी प्रकार के कैंसर में उपयोगी होता है.  शैवाल एवं विषाणु संक्रमण के विरुद्ध यह सूक्ष्मजीवरोधी माना जाता है, आतंरिक परजीवी एवं कीटाणुओं के विरुद्ध असरदार, यह उच्च रक्तप्रवाह को नियमित करता है, तनाव और अवसाद को कम करता है तथा तंत्रिका तंत्र की परेशानियों को दूर करता है.  

इस जानकारी के स्रोत भी बहुत आश्चर्यजनक हैं:

यह जानकारी विश्व की सबसे बड़ी औषधि निर्माता कंपनियों में से एक से प्राप्त हुई जानकारी है जिसमें कहा गया है कि १९७० से अब तक हुए २० से भी अधिक प्रयोगशाला परीक्षणों के नतीजे बताते हैं कि नीम्बू १२ प्रकार के कैंसर रोगों के लिए जिम्मेदार कोशिकाओं को नष्ट कर देता है, जिसमें शामिल हैं – कोलोन, स्तन, प्रोस्टेट, फेंफडे, अंतडियां आदि.

इस वृक्ष के यौगिकों ने Adriamycin दवा के मुकाबले १०००० गुना अधिक अच्छे परिणाम दिखाए और कैंसर की कोशिकाओं के विकास को धीमा कर दिया.Adriamycin एक दवा है जो विश्वभर में रसायन चिकित्सा (कीमोथैरेपी) में इस्तेमाल की जाती है.

और भी अधिक सुखद आश्चर्य की बात यह है कि नीम्बू सत्व से की जाने वाली चिकित्सा से केवल कैंसर के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं ही नष्ट होती हैं जबकि यह स्वस्थ कोशिकाओं पर कोई असर नहीं डालती.

वेबसाइट: http://www.instituteofhealthscience.org/ स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान, ८१९- एन, एलएलसी,   चार्ल्स स्ट्रीट, बाल्टीमोर, अमरीका 

गुरुवार, 18 अक्टूबर 2012

गंगा में प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि कैंसर का खतरा


जनसत्ता 18 अक्टुबर, 2012: गंगा को प्रदूषण-मुक्त बनाने के नाम पर अब तक हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन गंगा की सफाई के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर चलाए गए अभियानों की हकीकत स्तब्ध करने वाली है। आइसीएमआर यानी भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के तहत राष्ट्रीय कैंसर पंजीकरण कार्यक्रम की ओर से कराए गए अध्ययन के मुताबिक उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा में प्रदूषण इस हद तक बढ़ गया है कि वह अपने किनारे बसी आबादी के लिए बीमारियों का स्रोत साबित हो रही है। देश के दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले यहां के लोगों पर कैंसर का खतरा अधिक मंडरा रहा है। विडंबना यह है कि हमेशा से जीवनदायिनी मानी जाने वाली गंगा का यह हाल होता हम चुपचाप देख रहे हैं। आज गंगा में बड़े पैमाने पर घुल चुकी भारी धातुएं और घातक रसायन कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी की वजह बन चुके हैं। खासतौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल और बिहार के बाढ़ वाले इलाकों में पित्ताशय की थैली, गुर्दे, आहार नली, प्रोस्टेट, यकृत, मूत्राशय और त्वचा के कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं। गौरतलब है कि इन इलाकों में प्रति एक लाख की आबादी में बीस से पचीस ऐसे लोग पाए गए जो कैंसर की जद में आ चुके हैं। यह अनुपात देश के किसी भी दूसरे क्षेत्र के मुकाबले ज्यादा है और इसकी असल वजह किसी न किसी रूप में गंगा के प्रदूषित पानी का इस्तेमाल है। किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन गंगा का यह हाल हो जाएगा। 

करीब छह महीने पहले राष्ट्रीय गंगा नदी घाटी प्राधिकरण की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि गंगा में हर रोज दो अरब नब्बे करोड़ लीटर प्रदूषित जल बहाया जा रहा है और राज्य सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए बेहद ढीले-ढाले अंदाज में काम कर रही हैं।

उन्होंने राज्यों से उन औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था जो गंगा को इस कदर प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार हैं। विभिन्न सरकारी-गैरसरकारी बैठकों से लेकर पर्यावरणविदों की ओर से इस तरह की चिंता सालों से जताई जाती रही है और कई तरह के उपाय भी सुझाए जाते रहे हैं। लेकिन इन पर अमल के मामले में सरकारों या संबंधित महकमों ने कितना कुछ किया है, यह गंगा की इस हालत से जाना जा सकता है कि आज इसका पानी पीने लायक तो दूर, नहाने और खेती करने लायक तक नहीं बचा है।

दरअसल, गंगा में क्रोमियम, सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक जैसे जहरीले रसायनों के मूल स्रोत वे औद्योगिक इकाइयां हैं जिन पर सैकड़ों आश्वासनों के बावजूद कोई लगाम नहीं लगाई गई है। 1985 में शुरू की गई गंगा कार्य योजना एक हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद विफल साबित हुई। केवल बजटीय प्रावधान करके समस्या से निपटने की आधी-अधूरी कोशिशों का यही हश्र होता है। इतने बड़े पैमाने पर रकम खर्च करने के बावजूद गंगा की ऐसी दुर्दशा क्यों है इसकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।

हमारे सामने लंदन की टेम्स नदी का उदाहरण है जिसे न सिर्फ वहां की सरकार, बल्कि नागरिकों ने अपनी जिम्मेदारी समझ कर फिर से जिंदा किया और आज वह दुनिया में निर्मल नदी की एक मिसाल बन चुकी है। गंगा को भी इसी तरह की इच्छाशक्ति की जरूरत है। आधुनिक विकास की अवधारणा में नदियों को सिर्फ संसाधन के तौर पर देखा जाता है। इस नजरिए को भी बदलना होगा।

बुधवार, 5 सितंबर 2012

Dual Standards of UP Police in dealing with two cases of statue desecration?


30.08.2011

LUCKNOW: It's a tale of different treatment meted out by the police, in what looks prima-facie as two similar cases that took place within a month. While one relates to the desecration of a statue of former chief minister Mayawati, the other relates to the desecration of the statues of Lord Buddha and Lord Mahavira. An attempt to disrupt peace and harmony was the common motive in two incidents.
On July 27, activists of a little-known outfit Uttar Pradesh Navnirman Sena (UPNS) vandalised a life-size statue of former chief minister Mayawati near Ambedkar Memorial in Gomtinagar here. The incident took place minutes after Amit Jani, the national president of UP Navnirman Sena, told reporters at a press conference that if the state government didn't remove Mayawati's statues, as promised before the assembly elections, his outfit would do so in the next 72 hours.
After Maya's statue was desecrated, the Bahujan Samaj Party staged protests demanding immediate installation of a new statue of the same size and arrest of those involved in the incident. Under mounting pressure, the police booked the accused for sedition under Section 124-A, injuring or defiling place of worship or an object considered to be sacred by a section of people under Section 295-A, promoting enmity between different groups on grounds of religion, race, place of birth, residence, language etc under Section 153A besides a few other sections.
Most of the accused in the case were arrested and sent to jail and the damaged statue of the former CM was replaced with a new one within 24 hours.
A little over fortnight after this incident, hooligans on August 17 on the pretext of taking out a march to protest against the alleged killing of Muslims in Assam and Myanmar after Alvida namaz at Teelewali Masjid, desecrated the statue of Lord Buddha under Chowk and Lord Mahavira under Wazirgani police stations respectively.
The hooligans also beat up cameraperson who were trying to catch them in action and damaged their cameras.
After protest by mediapersons for police inaction, three FIRs were lodged at Chowk, Wazirganj and Hazratganj police stations on charges of promoting enmity between different groups on grounds of religion, race, place of birth, residence, language etc under Section 153A, loot under Section 395, stone pelting under Section 336, 7 Criminal Law Amendment Act etc.
But the police could make the first arrest only on August 27. So far, five persons have been arrested in this connection.
Other than this, what has intrigued the legal experts is the different treatment adopted by the police in the two cases of similar nature.
"It's a clear case of discrimination. While in one case, the government had the fear of stiff opposition, who could make a dent on their votebank by staging protest and demonstration, in the other case, the very fear of any opposition was bare minimum," said senior advocate Atul Verma.
However, another lawyer Mridul Rakesh sees overdoing in the case of vandalism of Mayawati's statue. About charges of sedition, Mridul is more judicious in his view and says that a wrong in one case cannot be equated with other.
Another legal expert Nadeem Murtaza sees the two cases in different perspective. In the case of Mayawati's statue, the culprits had a prior plan to damage the statue while in the case of Lord Buddha and Lord Mahavir, it was more of a mobocracy.
The purpose of the crowd was not to damage the statue basically, Murtaza said and added that the police action in both the cases was justified.

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

जैनों ने अपनाया आक्रामक रुख: मूर्ति खंडन के विरोध में निकली महारैली


 | Sep 03, 2012 | 0 comments | Edit Post

मुम्बई. ३ सितम्बर २०१२
गत दिनों लखनऊ (उ.प्र.) में भगवान महावीरस्वामी एवं गुलबर्ग (कर्नाटक) में भगवान आदिनाथ की १००० वर्ष प्राचीन मूर्तियों के असामाजिक तत्वों द्वारा हुए खंडन के तीव्र विरोधार्थ आज २ सितम्बर को विराट विरोध बाइक रैली  का आयोजन किया गया | ४००० से ज्यादा बाइक, २०० से ज्यादा कारें एवं १०००० लोगों की उपस्थिति इस ऐतिहासिक रैली  में  थी | रैली  का प्रारम्भ एस.वी.पी. मैदान, पंचोलिया कॉलेज, कांदिवली(प.) से मंगलप्रभात लोढा के हाथों जिनशासन ध्वजा फहराने के बाद हुआ और यह रैली मलाड, गोरेगाँव, जोगेश्वरी, अंधेरी स्टेशन, विलेपार्ले के आदि पार्श्व जिनालय, जुहू तारा रोड होती हुई, सभी मुख्य मार्गो से गुजरते हुए १५ किलोमीटर का रास्ता तय करके जुहू चौपाटी पहुंची |

मूर्ति तोड़नेवालों को सजा दो ..सजा दो

हजारों की संख्या में उपस्थित धर्मरक्षको ने नारे लगाये, जैनम जयतु शासनम, त्रिशलानंदन वीर की जय बोलो महावीर की, “गली- गली में गूंजे नाद, ऋषभदेव जय आदिनाथ’, ‘कर्णाटक सरकार हाय-हाय, उप्र सरकार हाय-हाय ‘ |

३ किलोमीटर लंबा काफिला

रैली में शामिल बच्चों, युवकों, युवतियों और महिलाओं ने बढ़चढ़कर कर नारेबाजी की. सभी ने काले झंडे हाथों में ले रखे थे और नारे लगा रहे थे. रैली धीमी गति से बढ़ रही थी जिससे आसपास के लोग भी रैली देखने के लिए हजारों की संख्या में सड़क के दोनों किनारे इकठ्ठा हो गए थे. मुम्बई के जिस-जिस उपनगर से रैली गुजरी वहाँ के जैन समाज के युवा और महिलाएँ उसमें शामिल होते गए, इसलिए करीब ३ किलोमीटर लंबा काफिला बन गया. जिसके कारण  संबंधित क्षेत्रों में यातायात भी काफी धीमा हो गया था पर मुम्बईवासियों ने आयोजन का उद्देश्य सही और सार्थक होने से कोई आपत्ति नहीं की और रैली के आगे बढ़ने का इंतज़ार करते रहे.

गणिवर्य श्री लब्धिचंद्र सागरजी म.सा. ने किया स्वागत

अंधेरी रेलवे स्थानक के बाद पूर्व-पश्चिम को जोड़ने वाले मुख्य उड़ान पुल के चौराहे पर गणिवर्य श्री लब्धिचंद्र सागरजी म.सा. अपने संघ सहित रैली का स्वागत करने आये और सबको आशीर्वाद प्रदान किया और यहीं से स्वयं भी रैली में शामिल हो गए.
रैली में जन धर्म के चारों संप्रदायों- श्वेताम्बर,दिगम्बर,स्थानकवासी,तेरापंथी महावीर भक्तो की उपस्थति से जैन एकता का अनूठा स्वरुप देखने को मिला हुआ |






जिसके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में भाला है वो ही सच्चा जैन है

जुहू चौपाटी पहुँचने पर गुरुदेव विरागसागरजी म.सा. ने रैली  को संबोधित करते हुए कहा की हम जैन अहिंसा परमो धर्म के सिद्धांत को माननेवाले है, मगर हमारे धर्म पे यदि कोई प्रहार करे तो उसे करारा जवाब दिया जायेगा |जिसके एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में भाला है वो ही सच्चा जैन है |उपस्थित जैन समुदाय की हाजरी में मुनिराज श्री ने लखनऊ और कर्नाटक की मूर्ति खंडन की घटनाओ का उग्र शब्दों में विरोध करते हुए तुरंत कड़ी कार्रवाई की मांग उप्र और कर्नाटक की राज्य सरकारों के समक्ष रखी |
इस सफल रैली का आयोजन पूज्य गणिवर्य श्री लब्धिचंद्र सागरजी म.सा.,क्रांतिकारी मुनिराज श्री विरागसागरजी म.सा., क्रांतिकारी मुनिराज श्री विनम्रसागरजी म.सा. के नेतृत्व में किया गया |मुंबई में विराजमान सभी जिनशासन रक्षक गुरु भगवंतो के आशीर्वाद प्राप्त हुए |

इस्तीफे की मांग

जैन संघों की ओर से लखनऊ के पुलिस आयुक्त, कर्नाटक के मुख्यमंत्री, एवं गुलबर्गा जिले के कलेक्टर के इस्तीफे की मांग की गयी |मुनिराज श्री विनम्र सागरजी म.सा. ने अपनी ओजस्वी वाणी में हुंकार भरी और असामाजिक तत्वों को आगाह किया कि जैन अहिंसक हैं, शांतिप्रिय हैं मगर इसका अर्थ यह नहीं कि जैन कायर हैं |

शनिवार, 1 सितंबर 2012

Vandalism of JainIdols: Mega Protest Rally by Jains in Mumbai on Sunday 2nd Sept 2012


Entire Jain Samaj of Greater Mumbai is organising a Mega Protest Bike Rally on Sunday, 2nd Septmeber 2012 to protest against vandalism of idols of Lord Adinath and Lord Mahavira in Allur (Gulbarg-Karnataka) and Lucknow (U.P.).
This Bike rally will start at 8:30 am from SVP Ground, Pancholiya College, opp. Shri Munisuvrat Swami Jain Derasar, Bhulabhai Desai Marg, Kandiwali (West), Mumbai and will march from there to Malad, Goregaon, Jogeshwari, Andheri and will end at Mahatma Gandhi Smaarak, Juhu Chaupati, Mumbai. Thereafter Prominent Jainacharayas & Jain Munis including Ganivarya Acharya Shri Labdhichandrasagarji Maharaj, Muni Shri Devprabhsagarji Maharaj, Munishri Viragsagarji Maharaj, Munishri Vinamra Sagarji Maharaj will address the gathering at 11:30 am at Juhu Chaupati.
Organizers have informed to Ahimsa Sangh that this is historical rally in various ways because it is a coordinated effort of all the four sects of Jainism i.e. Digambar, Shwetambar, Terapanthi & Sthankavasi. 10000 Jains are expected to join this rally and 5000 vehicles will Chakkajam on SV Road.
Those who wants to join this movement can bring in their Cycle, Bike, Scooter or Car etc.
Ahimsa Sangh Requests all Jain Sanghs & Jain Trusts in Mumbai to publicize this event on grand level and ensure their Mandir’s/Trust’s representation in the rally.
Pl fwd this msg via sms/email or Facebook wall and occupy social media by talking on topic #JainIdols and #JainProtests and make it top trending subject.
Regards,
Editor, Ahimsa Sangh
Link to this news item pl click

गुरुवार, 14 जून 2012

तेज़ी से बढ़ता अंग्रेजी और रोमन लिपि का इस्तेमाल


हिंदी के खबरिया चैनलों और अख़बारों में तेज़ी से बढ़ता अंग्रेजी और रोमन लिपि का इस्तेमाल


पिछले १-२ वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है, हिंदी के कई खबरिया चैनलों और अख़बारों (परन्तु सभी समाचार चैनल या अखबार नहीं) में अंग्रेजी और रोमन लिपि का इतना अधिक प्रयोग शुरू हो चुका है कि उन्हें हिंदी चैनल/हिंदी अखबार कहने में भी शर्म आती है. मैंने  कई संपादकों को लिखा भी कि अपने हिंदी समाचार चैनल/ अख़बार को अर्द्ध-अंग्रेजी चैनल / अख़बार(सेमी-इंग्लिश) मत बनाइये पर इन चैनलों/ अख़बारों  के कर्ताधर्ताओं को ना तो अपने पाठकों से कोई सरोकार है और ना ही हिंदी भाषा से, इनके लिए हिंदी बस कमाई का एक जरिया है.

मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में इनकी अक्ल ठिकाने जरूर आएगी क्योंकि आम दर्शक और पाठक के लिए हिंदी उनकी अपनी भाषा है, माँ भाषा है.

मुट्ठीभर लोग हिंदी को बर्बाद करने में लगे हैं

आज दुनियाभर के लोग हिंदी के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, विश्व की कई कम्पनियाँ/विवि/राजनेता हिंदी के प्रति रुचि दिखा रहे हैं पर भारत के मुट्ठीभर लोग हिंदी और भारत की संस्कृति का बलात्कार करने में लगे हैं क्योंकि इनकी सोच कुंद हो चुकी है इसलिए चैनलों/ अख़बारों के कर्ताधर्ता नाम और दौलत कमाते तो हिंदी के दम पर हैं पर गुणगान अंग्रेजी का करते हैं.

हिंदी को बढ़ावा देने या प्रसार करने या  इस्तेमाल को बढ़ावा देने में इन्हें शर्म आती है इनके हिसाब से भारत की हाई सोसाइटी में हिंदी की कोई औकात नहीं है और ये सब हिंदी की कमाई के दम पर उसी हाई सोसाइटी का अभिन्न अंग बन चुके हैं. इसलिए बार-बार नया कुछ करने के चक्कर में हिंदी का बेड़ा गर्क करने में लगे हुए हैं.

शुरू-२ में देवनागरी के अंकों (१२३४५६७८९०) को टीवी और मुद्रण से हकाला गया, दुर्भाग्य से ये अंक आज इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं और अब बारी है रोमन लिपि की घुसपैठ की, जो कि धीरे-२ शुरू हो चुकी है ताकि सुनियोजित ढंग से देवनागरी लिपि को भी धीरे-२ खत्म किया जाए. कई अखबार और चैनल आज ना तो हिंदी के अखबार/चैनल बचे हैं और न ही वे पूरी तरह से अंग्रेजी के चैनल बन पाए हैं. इन्हें आप हिंग्लिश या खिचड़ा कह सकते हैं.

ऐसा करने वाले अखबार और चैनल मन-ही-मन फूले नहीं समां रहे हैं, उन्होंने अपने-२ नये आदर्श वाक्य चुन लिए हैं जैसे- नये ज़माने का अखबार, यंग इण्डिया-यंग न्यूज़पेपर, नेक्स्ट-ज़ेन न्यूज़पेपर, इण्डिया का नया टेस्ट आदि-आदि. जैसे हिंदी का प्रयोग पुराने जमाने/ पिछड़ेपन की निशानी हो. यदि ये ऐसा मानते हैं तो अपने हिंदी अखबार/चैनल बंद क्यों नहीं कर देते? सारी हेकड़ी निकल जाएगी क्योंकि हम सभी जानते हैं हिंदी मीडिया समूहों द्वारा शुरू किये अंग्रेजी चैनलों/अख़बारों की कैसी हवा निकली हुई है. (हेडलाइंस टुडे/डीएनए/ डीएनए मनी /एचटी आदि).

क़ानूनी रूप से देखा जाए तो सरकारी नियामकों को इनके पंजीयन/लाइसेंस को रद्द कर देना चाहिए क्योंकि इन्होंने पंजीयन/लाइसेंस हिंदी भाषा के नाम पर ले रखा है. पर इसके लिए जरूरी है कि हम पाठक/दर्शक इनके विरोध में आवाज़ उठाएँ और अपनी शिकायत संबंधित सरकारी संस्था/मंत्रालय के पास जोरदार ढंग से दर्ज करवाएँ. कुछ लोग कह सकते हैं ‘अरे भाई इससे क्या फर्क पड़ता है? नये ज़माने के हिसाब से चलो, भाषा अब कोई मुद्दा नहीं है, जो इंग्लिश के साथ रहेगा वाही टिकेगा आदि.

हिंदी के कारण आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ताकत बढ़ रही है और भारत के  कई बड़े समाचार चैनल /पत्रिका/समाचार-पत्र हिंदीके कारण ही करोड़ों-अरबों के मालिक बने हैं, नाम और ख्याति पाए हैं पर ये सब होने के बावजूद आधुनिकता/नयापन/कठिनता के नाम पर  हिंदी प्रचलित शब्दों और हिंदी लिपि को अखबार/वेबसाइट/पत्रिका/चैनल हकाल रहे हैं धडल्ले से बिना किसी की परवाह किये रोमन लिपि का इस्तेमाल  कर रहे हैं.

हिंदी के शब्दों को कुचला जा रहा है

हिंदी में न्यूज़ और खबर के लिए एक बहुत सुन्दर शब्द है ‘समाचार’ जिसका प्रयोग  दूरदर्शन के अलावा किसी भी निजी चैनल पर वर्जित जान पड़ता है ऐसे ही सैकड़ों हिंदी शब्दों (समय, दर्शक, न्यायालय, उच्च शिक्षा, कारावास, असीमित, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, विराम, अधिनियम, ज्वार-भाटा, सड़क, विमानतल, हवाई-जहाज-विमान, मंत्री, विधायक, समिति, आयुक्त,पीठ, खंडपीठ, न्यायाधीश, न्यायमूर्ति, भारतीय, अर्थदंड, विभाग, स्थानीय, हथकरघा, ग्रामीण, परिवहन, महान्यायवादी, अधिवक्ता, डाकघर, पता, सन्देश, अधिसूचना, प्रकरण, लेखा-परीक्षा, लेखक, महानगर, सूचकांक, संवेदी सूचकांक, समाचार कक्ष, खेल-कूद/क्रीड़ा, डिब्बाबंद खाद्यपदार्थ, शीतलपेय, खनिज, परीक्षण, चिकित्सा, विश्वविद्यालय, प्रयोगशाला, प्राथमिक शाला, परीक्षा-परिणाम, कार्यालय, पृष्ठ, मूल्य आदि-आदि ना जाने कितने ऐसे शब्द  हैं जो अब टीवी/अखबार पर सुनाई/दिखाई ही नहीं देते हैं ) को डुबाया/कुचला जा रहा है, नये-नये अंग्रेजी के शब्द थोपे जा रहे हैं.

क्या हम अंगेजी चैनल पर हिंदी शब्दों और हिंदी लिपि के इस्तेमाल के बारे में सपने में भी सोच सकते हैं? कदापि नहीं.  फिर हिंदी समाचार चैनलों पर रोमन लिपि और अनावश्यक अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल क्यों ? क्या सचमुच हिंदी इतनी कमज़ोर और दरिद्र है? नहीं, बिल्कुल नहीं.

हमारी भाषा विश्व की सर्वश्रेष्ठ और अंग्रेजी के मुकाबले लाख गुना वैज्ञानिक भाषा है. जरूरत है हिंदी वाले इस बारे में सोचें.

आज जो स्थिति है उसे देखकर लगता है कि भारत की हिंदी भी फिजी हिंदी की तरह कुछ वर्षों में मीडिया की बदौलत रोमन में ही लिखी जाएगी!!!

मुझे हिंदी से प्यार है इसलिए बड़ी खीझ उठती है, दुःख होता है. डर भी लगता है कि कहीं हिंदी के अंकों (१,,,,,,,,०) की तरह धीरे-२ हमारी लिपि को भी हकाला जा रहा है. आज हिंदी अंक इतिहास बन चुके हैं, पर भला हो गूगल का जिसने इनको पुनर्जीवित कर दिया है.

हिंदी संक्षेपाक्षर क्या बला है इनको पता ही नहीं

हिंदी संक्षेपाक्षर सदियों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं, मराठी में तो आज भी संक्षेपाक्षर का प्रयोग भरपूर किया जाता है और नये-२ संक्षेपाक्षर बनाये जाते हैं पर आज का हिंदी मीडिया इससे परहेज़ कर रहा है, देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि का उपयोग कर रहा है. साथ ही मीडिया हिंदी लिपि एवं हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को हिंदी के प्रचार में बाधा मानता है, जो पूरी तरह से निराधार और गलत है.

मैं ये मानता हूँ कि बोलचाल की भाषा में हिंदी संक्षेपाक्षरों की सीमा है पर कम से कम लेखन की भाषा में इनके प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए और जब सरल हिंदी संक्षेपाक्षर उपलब्ध हो या बनाया जा सकता हो तो अंग्रेजी संक्षेपाक्षर का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.

मैं अनुरोध करूँगा कि नए-नए सरल हिंदी संक्षेपाक्षर बनाये जाएँ और उनका भरपूर इस्तेमाल किया जाये, मैं यहाँ कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची देना चाहता हूँ जो हैं तो पहले से प्रचलन में हैं अथवा इनको कुछ स्थानों पर इस्तेमाल किया जाता है पर उनका प्रचार किया जाना चाहिए, आपको कुछ अटपटे और अजीब भी लग सकते हैं, पर जब हम एक विदेशी भाषा अंग्रेजी के सैकड़ों अटपटे शब्दों/व्याकरण को स्वीकार कर चुके हैं तो अपनी भाषा के थोड़े-बहुत अटपटे संक्षेपाक्षरों को भी पचा सकते हैं बस सोच बदलने की ज़रूरत है.

हिंदी हमारी अपनी भाषा है, इसके विकास की जिम्मेदारी हम सब पर है और मीडिया की ज़िम्मेदारी सबसे ऊपर है.

हमारी भाषा के पैरोकार की उसे दयनीय और हीन बना रहे हैं, वो भी बेतुके बाज़ारवाद के नाम पर. आप लोग क्यों नहीं समझ रहे कि हिंदी का चैनल अथवा अखबार हिंदी में समाचार देखने/सुननेपढ़ने  के लिए होता है ना कि अंग्रेजी के लिए? उसके लिए अंग्रेजी के ढेरों अखबार और चैनल हमारे पास उपलब्ध हैं.

मैं इस लेख के माध्यम से इन सारे हिंदी के खबरिया चैनलों और अखबारों से विनती करता हूँ कि हमारी माँ हिंदी को हीन और दयनीय बनाना बंद कर दीजिये, उसे आगे बढ़ने दीजिये.

हिन्दीभाषी साथियों की ओर से  मेरा विनम्र निवेदन:
१. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में अंग्रेजी के अनावश्यक शब्दों का प्रयोग बंद होना चाहिए.
२. जहाँ जरूरी हो अंग्रेजी के शब्दों को सिर्फ देवनागरी में लिखा जाए रोमन में नहीं.
३. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

आम जनता से एक ज्वलंत प्रश्न:

क्या ऐसे समाचार चैनलों/अखबारों का बहिष्कार कर देना चाहिए जो हिन्दी का स्वरूप बिगाड़ने में लगे हैं ?


कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची
 राजनीतिक दल/गठबंधन/संगठन :

राजग: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [एनडीए]
संप्रग: संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन [यूपीए]
तेदेपा: तेलुगु देशम पार्टी [टीडीपी]
अन्ना द्रमुक: अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम[ अन्ना डीएमके]
द्रमुक: द्रविड़ मुनेत्र कषगम [डीएमके]
भाजपा: भारतीय जनता पार्टी [बीजेपी]
रालोद : राष्ट्रीय लोक दल [आरएलडी]
बसपा: बहुजन समाज पार्टी [बीएसपी]
मनसे: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [एमएनएस]
माकपा: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीएम]
भाकपा: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीआई]
राजद: राष्ट्रीय जनता दल [आरजेडी]
बीजद: बीजू जनता दल [बीजेडी]
तेरास: तेलंगाना राष्ट्र समिति [टीआरएस]
नेका: नेशनल कॉन्फ्रेन्स
राकांपा : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [एनसीपी]
अस: अहिंसा संघ
असे: अहिंसा सेना
गोजमुमो:गोरखा जन मुक्ति मोर्चा
अभागोली:अखिल भारतीय गोरखा लीग
मगोपा:महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी)
पामक : पाटाली मक्कल कच्ची (पीएमके)  
गोलिआ:गोरखा लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (जीएलओ)

संस्थाएँ
अंक्रिप = अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद [आईसीसी]
संसंस : संयुक्त संसदीय समिति [जेपीसी]
आस: आयोजन समिति [ओसी]
प्रेट्र:प्रेस ट्रस्ट [पीटीआई]
नेबुट्र:नेशनल बुक ट्रस्ट
अमुको : अंतर्राष्ट्रीय  मुद्रा कोष [आई एम एफ ]
भाक्रिनिम : भारतीय क्रिकेट नियंत्रण मंडल/ बोर्ड [बीसीसीआई]
केमाशिम : केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल/बोर्ड [सीबीएसई]
व्यापम: व्यावसायिक परीक्षा मंडल
माशिम: माध्यमिक शिक्षा मण्डल
राराविप्रा: राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण [एनएचएआई]
केअब्यू : केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो [सीबीआई]
मनपा: महानगर पालिका
दिननि : दिल्ली नगर निगम [एमसीडी]
बृमनपा: बृहन मुंबई महानगर पालिका [बीएमसी]
भाकृअप : भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद
भाखेम : भारतीय खेल महासंघ
भाओस : भारतीय ओलम्पिक संघ [आईओए]
मुमक्षेविप्रा: मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण [एमएमआरडीए ]
भापुस : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण [एएसआई]
क्षेपका : क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय [आरटीओ]
क्षेपा: क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी [आरटीओ]
कर: कम्पनी रजिस्ट्रार [आरओसी]
जनवि: जवाहर नवोदय विद्यालय
नविस : नवोदय विद्यालय समिति
सरां: संयुक्त राष्ट्र
राताविनि:राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम [एनटीपीसी]
रासंनि:राष्ट्रीय संस्कृति निधि [एनसीएफ ]
सीसुब: सीमा सुरक्षा बल [बीएसएफ]
रारेपुब: राजकीय रेलवे पुलिस बल
इविप्रा : इन्दौर विकास प्राधिकरण [आईडीए]
देविप्रा: देवास विकास प्राधिकरण
दिविप्रा : दिल्ली विकास प्राधिकरण [डीडीए]
त्वकाब : त्वरित कार्य बल
राराक्षे : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र [एनसीआर]
भाजीबीनि : भारतीय जीवन बीमा निगम [एलआईसी]
भारिबैं: भारतीय रिज़र्व बैंक [आरबीआई]
भास्टेबैं: भारतीय स्टेट बैंक [एसबीआई]
औसुब : औद्योगिक सुरक्षा बल
अभाआस:अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान [एम्स]
नाविमनि: नागर विमानन महानिदेशालय [डीजीसीए]  
अंओस: अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी)
रासूविके: राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र [एनआईसी]
विजांद: विशेष जांच दल [एसआईटी]
भाप्रविबो:भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड [सेबी]
केरिपुब: केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल [सीआरपीएफ]
भाअअस: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो]
भाबाकप: भारतीय बाल कल्याण परिषद
केप्रकबो: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड [सीबीडीटी]
केसआ:केंद्रीय सतर्कता आयुक्त [सीवीसी]
भाप्रस: भारतीय प्रबंध संस्थान [आई आई एम]
भाप्रौस : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान [आई आई टी ]
रारेपु:राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी)

अन्य :
मंस : मंत्री समूह
जासके : जागरण सम्वाद केन्द्र
जाससे:जागरण समाचार सेवा
अनाप्र: अनापत्ति प्रमाणपत्र
इआप: इलेक्ट्रोनिक आरक्षण पर्ची
राग्रास्वामि : राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम]
कृपृउ : कृपया पृष्ठ उलटिए
रासामि : राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
रनाटै मार्ग  : रवीन्द्रनाथ टैगोर मार्ग
जलाने मार्ग: जवाहर लाल नेहरु मार्ग
अपिव: अन्य पिछड़ा वर्ग [ओबीसी]
अजा: अनुसूचित जाति [एससी]
अजजा: अनुसूचित जन जाति [एसटी]
टेटे : टेबल टेनिस
मिआसा- मिथाइल आइसो साइनाइट
इवोम- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन [ईवीएम]
ऑटिवेम: ऑटोमैटिक टिकट वेण्डिंग मशीन
स्वगम: स्वचालित गणना मशीन  [एटीएम]
ऑटैम : ऑटोमेटिक टैलर मशीन [एटीएम]
यूका:यूनियन कार्बाइड
मुम: मुख्यमंत्री
प्रम : प्रधान मंत्री
विम: वित्तमंत्री/ विदेश मंत्री/मंत्रालय
रम : रक्षा मंत्री/ मंत्रालय
गृम : गृह मंत्री/ मंत्रालय
प्रमका: प्रधान मंत्री कार्यालय [पीएमओ]
शिगुप्रक:शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी [एसजीपीसी]  
रामखे:राष्ट्रमंडल खेल [सीडब्ल्यूजी]
पुमनि:पुलिस महानिदेशक [डीजीपी] 
जहिया:जनहित याचिका [पीआइएल]
गैनिस: गैर-निष्पादक सम्पतियाँ (एनपीए)
सभागप:समर्पित भाड़ा गलियारा परियोजना
सानियो: सामूहिक निवेश योजना [सीआईएस)  
अमलेप:अंकेक्षक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)
सराअ :संयुक्त राज्य अमरीका  [यूएसए]
आक: आयकर
सेक : सेवाकर
वसेक : वस्तु एवं सेवा कर [जीएसटी]
केविक: केन्द्रीय विक्रय कर [सीएसटी]
मूवक: मूल्य वर्द्धित कर [वैट]
सघउ : सकल घरेलु उत्पाद [जीडीपी]
नआअ: नगद आरक्षी अनुपात [सीआरआर]
प्रमग्रासयो: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
विस: वित्त समिति, विधानसभा, वित्त सचिव
प्रस: प्रचार समिति
व्यस :व्यवस्था समिति
न्याम: न्यासी मण्डल
ननि : नगर निगम
नपा: नगर पालिका
नप: नगर पंचायत
मनपा : महा नगर पालिका
भाप्रा: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग
भापाके : भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र
केंस: केंद्र सरकार
भास: भारत सरकार
रास: राज्य सरकार/राज्यसभा
मिटप्रव: मिट्रिक टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) 

सानिभा: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) 

निरह: निर्माण-रखरखाव-हस्तान्तरण (ओएमटी)

निपह: निर्माण-परिचालन-हस्तान्तरण  (बीओटी)

तीगग: तीव्र गति गलियारा  (हाई स्पीड कोरिडोर)

भाविकांस: भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ



फ़िल्में :
ज़िनामिदो : जिंदगी ना मिलेगी दोबारा [ज़ेएनएमडी]
दिदुलेजा: दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे [डीडीएलजे]
पासिंतो :पान सिंह तोमर

धारावाहिक:
कुलोक : कुछ तो लोग कहेंगे, जीइकाना: जीना इसी का नाम है,  दीबाह: दीया और बाती हम

धन्यवाद सहित,
प्रवीण कुमार जैन,
कंपनी सचिव, नवी मुम्बई